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प्रस्ताव १ : पीठबन्ध
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निन्दा प्राप्त करता है और भय शोक आदि उत्पन्न करने वाले क्लिष्ट । कर्मों द्वारा घिरा हुमा होने से प्रत्यन्त ही दीन और गरीब है ।
जैसा कि पूर्व में कहा गया है कि 'वह निष्पुण्यक भिखारी प्रदृष्ट-मूलपर्यन्त नगर में निरन्तर भीख मांगने के लिये घर-घर भटकता था वैसे ही यह जीव भी संतारनगर में विषयरूपी तुच्छ भोजन प्राप्त करने को लालसा रूप पाश से जकड़ा हुआ एक जन्म से दूसरे जन्म में, दूसरे जन्म से तीसरे जन्म में, ऊंच-नीच कुलों में निरन्तर भटकता रहता है । 'भीख लेने के लिये उसके पास टूटा-फूटा मिट्टी का ठीकरा (भिक्षपात्र ) था उस भिक्षापात्र को यहाँ जीव का आयुष्य समझें; क्योंकि यह पात्र ही विषयरूपी कुत्सित अन्न और चारित्ररूप महाकल्याणकारी भोजन ग्रहण करने का आधार है और इसी प्रायुष्य को लेकर यह जीव निरन्तर संसारनगर में भटकता रहता है ।
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दुर्दान्त बाल
'इस दरिद्री भिखारी को चिढाने के लिये नगर के दुर्दान्त बच्चे प्रतिक्षण लकड़ियाँ, बड़े-बड़े पत्थर और घूसे मार-मारकर उससे छेड़छाड़ करते थे, जिससे वह अधमरा और बहुत दुःखी हो रहा था ऐसा कहा गया है उसे इस जीव के कुविकल्प, सारहीन तर्क तथा इन कुविकल्पों को उत्पन्न करने वाले ग्रन्थ एवं उन कुतर्क ग्रन्थों के प्रणेता और उपदेशकों को कुतीर्थी समझें । ये लोग जब-जब इस पामर जीव को देखते हैं तब-तब उस पर सैकड़ों निकृष्ट हेतुरूप मुद्गरों का आघात करके उसके तत्त्वाभिमुख शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं । इस प्रकार आघातों से जर्जरित ( अधमरा ) हो जाने पर वह प्राणी (जीव ) कार्य और अकार्य का भेद करने में समर्थ नहीं रह पाता, भक्ष्य और अभक्ष्य पदार्थों में भेद नहीं कर पाता, पेय और पेय का स्वरूप नहीं जान पाता, हेय और उपादेय के भेद को समझ नहीं सकता, स्वयं के और दूसरों के गण और दोष के निश्चित कारण क्या हैं उन्हें लक्ष्य में नहीं ले सकता, अर्थात् उसकी विचारशक्ति नष्ट हो जाती है । कुतर्क से चिन्तन-शक्ति नष्ट होने पर वह जीव सोचता है । परलोक नहीं है, अच्छे-बुरे कर्मों का फल मिलता ही नहीं है, आत्मा हो ऐसा सम्भव नही है, सवज्ञ होता ही नहीं है और सर्वज्ञभाषित मार्ग मोक्षमार्ग है ऐसी कल्पना भी व्यर्थ है । ( इस प्रकार के कुविचार ही इस जीव को अधमरा करने वाले दुर्दान्त बाल हैं ) । इस प्रकार तत्त्वज्ञान से हीन होकर विपरीत मनोवृत्ति को धारण कर यह जीव प्राणियों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, दूसरे के धन-हरण करता है, विषयासक्त हो जाता है अथवा पराई स्त्रियों के साथ संभोग करता है, परिग्रह का संचय करता है, इच्छाओं पर अंकुश नहीं रखता, मांस भक्षण करता है, मदिरापान करता है, श्रेष्ठ उपदेश को ग्रहण नहीं करता है, कुमार्ग का प्रचार करता है, वन्दनीय पुरुषों की निन्दा करता है, गुणहीनों की सेवा करता है, स्व और पर के गुण-दोषों के कारणों की ओर ध्यान नहीं देता है और दूसरों की निन्दा करता हुआ यह प्राणी समस्त पापों का
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