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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
३. महाकल्याणक भोजन . १८. तीसरा वह महाकल्याणक परमान्न नामक खीर है, जिसे तद्दया लेकर यहाँ खड़ी है, जो सर्व व्याधियों को समूल नष्ट करने में समर्थ है। इसका बराबर विधि पूर्वक सेवन करने से शरीर का रूप रंग बढ़ता है। वह पुष्टिकारक, धृतिकारक, बलवर्धक, चित्तानन्दकारी, पराक्रम बढ़ाने वाला, युवावस्था को स्थिर रखने वाला, वीर्य में वृद्धि करने वाला, और अजर-अमरत्व प्रदान करने वाला है। इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है। यह भोजन ही इतनी श्रेष्ठ औषधि है कि इससे श्रेष्ठ औषधि विश्व में दूसरी हो ही नहीं सकती। अतः मैं इस बेचारे का इन औषधियों से उपचार कर इसे व्याधियों से छुड़ाऊँ, इस प्रकार धर्मबोधकर ने अपने मन में सोचा। [२१०-२१२] अंजन का अद्भुत प्रभाव
१६. फिर उसने सलाई पर अंजन (सुरमा) लगाया और वह निष्पुण्यक सिर घुनता रहा तब भी उसने उसकी आँखों में सुरमा लगा ही दिया। वह सुरमा प्रानन्दायक, बहत ठंडा और अचिन्त्य गुणवाला था। अतः उस भिखारी की अाँखों में लगाते हो उसकी चेतना वापस आ गई। परिणाम स्वरूप थोड़ी ही देर में उसने अपनी आँखें खोली तो उसे ऐसा लगने लगा मानों उसके सब चक्षु रोग नष्ट हो गये हों। उसके मन में थोड़ा पानन्द हुआ। उसे आश्चर्य हुआ कि यह क्या हो गया ! इतना लाभ होने पर भी पूर्वकालीन संस्कारों के कारण उसका अपने भिक्षा पात्र कों पकड़े रखने का स्वभाव नहीं गया। अब भी भिक्षा पात्र की रक्षा का विचार उसके मन में बार-बार उठता रहता था। यह एकान्त स्थान है, अतः कोई उसका भिक्षा पात्र उठाकर न ले जाय, इस विचार से वह वहाँ से भागने के लिये रास्ता ढूँढने को चारों तरफ नजरें घुमा रहा था। [२१३-२१८] जल का विलक्षण प्रभाव
२०. निष्पुण्यक को सुरमा लगाने से कुछ चेतना प्राप्त हुई देखकर धर्मबोधकर ने मीठे वचनों से उससे कहा-'भद्र ! तेरे सब तापों (रोगों) को कम करने वाला यह पानी तो जरा पी,* यह पानी पीने से तेरा शरीर सम्यक प्रकार से स्वस्थ हो जायेगा। धर्मबोधकर जब उस भिखारी को इस प्रकार की प्रेरणा दे रहा था तब भी वह द्रमुक (निष्पुण्यक) शंकाकुल होकर अपने मन में सोच रहा था कि यह पानी पीने से क्या होगा? इसका क्या निश्चय ? ऐसे विचारों से उस महात्मा ने पानी पीने की इच्छा नहीं की। धर्मबोधकर ने जब उसकी ऐसी दशा देखी तव हृदय में अत्यधिक दयाभाव होने के कारण उसके हित के विचार से उसकी इच्छा के विरुद्ध भी, बलपूर्वक मुंह खोलकर उसने तत्व-प्रीतिकर नामक जल उसके मुंह में डाल दिया। यह पानी अत्यन्त ठंडा, अमृत के समान स्वादिष्ट,
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