Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति-भव-प्रपंच कथा
समय में अपथ्य भोजन करने से उसे कोई टोकता नहीं था, जिससे उसके व्याधिविकार फिर से प्रकट होने लगे थे और वह फिर जैसा का तैसा हो जाता था। वही खड्डा और वहीं मेंढा वाला उक्ति उस पर चरितार्थ हो रही थी। [३६०-३६२] सद्बुद्धि की नियुक्ति
३३. एक समय धर्मबोध कर उसे इस प्रकार व्याधियों से पीड़ित होते हुए देखा और उससे अब भी इस प्रकार पीड़ित रहने का कारण पूछा । इसके उत्तर में निष्पुण्यक ने अपनी सारी वास्तविकता बताते हुए कहा-महाशय ! आपकी पुत्री तद्दया मेरे पास सर्वदा नहीं रह सकती, फलतः उसकी अनुपस्थिति में मेरी व्याधियाँ अधिक बढ़ जाती हैं। अतः प्रभो ! आप मेरे लिये कुछ ऐसी व्यवस्था कीजिये कि फिर मुझे स्वप्न में भी पीड़ा न हो। [३६३-३६५]
धर्मबोधकर ने कहा-'भाई ! तेरे शरीर में बार-बार पीड़ा होने का कारण तेरा अपथ्य सेवन है। तद्दया को तो बहुत से काम सौंपे हुए हैं, इसलिये वह तो पूरे समय एक या दूसरे काम में व्यस्त रहती है, अतः तुझे अपथ्य सेवन से बार-बार रोक सके, ऐसी कोई स्त्री हो तो तेरी परिचारिका नियुक्त करूं। तू अभी तक यह नहीं जान पाया है कि तेरा आत्महित किस में है ? तू पथ्य भोजन से दूर भागता रहता है और अपने अपथ्य भोजन को करने में सर्वदा प्रयत्नशील रहता है, फिर मैं तेरे बारे में क्या करूँ ? धर्मबोधकर के ऐसे वचन सुनकर निष्पुण्यक ने कहा-'प्रभो आप ऐसा न कहें। अब से मैं आपकी आज्ञा का कभी उल्लंघन नहीं करूंगा, आपकी आज्ञा का बराबर पालन करूगा।' [३६६-३६६]
निष्पुण्यक का कैसे भला हो, इस विचार में परार्थ-हित में उद्यत मानस वाले धर्मबोधकर थोड़ी देर सोचते रहे। फिर उसकी बात सुनकर उन्होंने कहाएक सद्बुद्धि नामक लड़की मेरी आज्ञाकारिणा है। उसे दूसरा अधिक काम नहीं है। मेरा विचार उसे तेरी परिचारिका बनाने का है। वह लड़की तेरे पास निरन्तर रहेगी और तेरे लिए पथ्य क्या है और अपथ्य क्या है, इसका सुझाव तुझे देती रहेगी। ऐसी अच्छी दासी मैं तेरी सेवा में नियुक्त कर रहा हूँ, इसलिये अब तुझे भी घबराने की आवश्यकता नहीं है। वह अच्छी जानकार है, इसलिये विपथगामी और शिष्टाचार रहित प्राणी पर वह किंचित् भी उपकार नहीं करती। अतः यदि तुझे सुख प्राप्त करने की इच्छा हो और दुःख से भय लगता हो तो वह जैसा कहे वैसा प्रतिदिन करना । तुझे विशेष रूप से आदेश देता हूँ और शिक्षा प्रदान करता हूँ कि तू उसके कथनानुसार ही करना । उसे जो प्रिय नहीं, वह मुझे भी प्रिय नहीं यह तुझे समझ लेना चाहिये। तद्दया अनेक कार्यों में व्यस्त है, फिर भी वह कभीकभी तेरे पास आती रहेगी और तुझे जागृत करती रहेगा। तेरे परमार्थ और हितकामना से मैं फिर कह रहा है कि यदि तुझे सुख पाने की इच्छा है तो सद्बुद्धि को
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