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तीर्थङ्कर चरित्र
शुद्धभट और उसकी पत्नी सुलक्षणा ने भगवान के पास प्रवज्या ग्रहण की।
भगवान भजितनाथ के ९५ गणधर हुए। एक लाख साधु, तीन लाख तीस हजार साध्वियां, २७२० चौदहपूर्वधारी, १२५५० मनःपर्ययज्ञानी २२००० केवली, १२४०० वादी, २०४०० वैक्रियलब्धिधारी, २९८००० श्रावक एवं ५४५००० श्राविकाएँ हुई।
___ दीक्षा के बाद एक पूर्वाङ्ग कम लाख पूर्व बीतने पर अपना निर्वाण काल समीप जानकर भगवान समेतशिखर पर पधारे वहाँ एक हजार मुनियों के साथ पादोपगमन अनशन किया ।
एक मास के अन्त में चैत्रशुक्ला पंचमी के दिन मृगशिर नक्षत्र में एक हजार मुनियों के साथ भगवान ने निर्वाण प्राप्त किया । इन्द्रादि देवों ने निर्वाण-महोत्सव मनाया ।
भगवान की ऊंचाई ४५० धनुष थी। भगवान ने अठारह लाख पूर्व कौमार अवस्था में, त्रेपनलाख पूर्व चौरासी लाख वर्ष राज्यत्व काल में, बारह वर्ष छद्मस्थ अवस्था में, चौरासीलाख बारह वर्ष कम एक लाख पूर्व केवलज्ञान अवस्था में विताये। इस तरह बहत्तर लाख पूर्व की आयु समाप्त कर भगवान अजितनाथ ऋषभदेव के निर्वाण के पचास लाख करोड़ सागरोपम वर्ष के बाद मोक्ष में गये।
३. भगवान संभवनाथ धातकीखण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में 'क्षेमपुरी' नामकी एक प्रसिद्ध नगरी थी । वहाँ का विपुलवाहन नामका तेजस्वी एवं पराक्रमी राजा था। वह प्रजा का पुत्र की तरह पालन करता था। उसके राज्य में सभी सुखी और समृद्ध थे।
राजा नीति पूर्वक राज्य कर रहा था । कालान्तर से अशुभकर्म के उदय से दुष्काल पड़ गया। वर्षा के अभाव में वर्षाकाल भी दूसरा ग्रीष्मकाल बन गया था । नैऋत्यकोण के भयंकर वायु से रहे सहे पानी का शोषण और वृक्षों का उच्छेद होने लगा । सूर्य कांसे की थाली जैमा