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आगम के अनमोल रत्न
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दिव्य देवरूप प्रकट किया और सती को प्रणाम कर उसकी प्रशंसा करने लगा । सतो ने देव से पूछा-देव । पतिदेव के दर्शन कब होंगे ? देव ने कहा-सती ! आपको बारह वर्ष तक कष्ट सहन करना पड़ेगा उसके बाद पति का मिलाप होगा और पुनः राजरानी बनोगी।
दमयन्ती भागे चली । मार्ग में सिंह, व्याघ्र, सर्प आदि हिंसक प्राणी मिले किन्तु उसपर किसी ने भी आक्रमण नहीं किया । वर्षा आरम्भ होगई थी मत चलना कठिन होगया। पहाड़ों के बीच एक सुन्दर गुफा थी। वह गुफा में पहुँची । उसने वहीं वर्षा काल व्यतीत करने का निश्चय किया। स्वाध्याय, ध्यान और तप में अपना समय विताने लगी। वह सार्थ भी दमयन्ती को खोजते खोजते गुफा में आ पहुँचा । उस गुफा के आस पास अनेक तापस गण रहते थे। वे भी वर्षों से त्राण पाने के लिये गुफा में आ पहुँचे । सभी दमयन्ती के विशुद्ध चरित्र व तत्वज्ञान से प्रभावित थे । दमयन्ती सभी को निर्ग्रन्थ प्रवचन के रहस्य को समझाती। दमयन्ती के प्रवचनों से सभी आहत भक्त हो गये।
एक रात्रि में समीप के एक पर्वन में दिव्य प्रकाश दिखाई दिया। उस प्रकाश में देवी देवताओं का आगमन स्पष्ट रूप से दिखाई देनेलगा। उस पर्वत में क्या है यह देखने से लिये दमयन्ती, सार्थ और तापस प्रकाश की दिशा की ओर गये। वहाँ एक पर्वत की गुफा में सहकेशर नाम के मुनिवर को केवलज्ञान उत्पन्न हुभा था । देवतागण सहकेशर केवली को वन्दन करने वहाँ आरहे थे। वह वहाँ पहुँची और मुनि को वन्दना कर उसने अपना पूर्व भव पूछा । मुनिने कहा-"देवी ! सुनो
जम्बूद्वीपमें भरत क्षेत्र के अन्तर्गत संगर नाम का नगर था। वहाँ ममन नाम के राजा राज्य करते थे। उसकी स्त्री का नाम वीरमती था। एक समय राजा और रानी दोनों कहीं बाहर जाने के लिये तैयार हुए इतने में सामने एक मुनि भाते हुए दिखाई दिये । राजा