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पू० श्रीरोडीदासजी म० ... ..m.wwwwwrrmes - उपरोक्त तपाराधना में २५ वर्ष लगे । । । । कर्मचूर तप के अतिरिक अन्य तप इस प्रकार कियेःतपनाम तपदिन पारणा कुलदिन वर्ष मास दिन मास खमण ४३. १२९०१३ १३३३ ३ ८ १३ अठाई २०० १६०० २०० १८०० ५ .. . बेला ३६० ७२० ३६० १०८० ३ ० .
उपरोक्त तपस्या में कुल ३६ वर्ष ७ महिने २८ दिन लगे । आपकी कुल आयु ५७ वर्ष की थी। आप पारणे में प्रायः विगय का त्याग रखते थे । तपश्चर्या के समय शास्त्रोक्त पद्धति से आसन लगा कर ध्यान करते थे। आप प्रायः समूह में न रहकर अकेले वन तथा जनशून्य स्थानों में रहकर घंटों तक ध्यान करते थे । - आप केवल तपस्वी हो नहीं थे किन्तु आगों के अच्छे ज्ञाता भी थे। आपकी व्याख्यान शैली बड़ी मधुर और असरकारक थी। आपका उपदेश श्रवण कर श्रोतागण वैराग्य रंग में भीग जाते थे। भापके. प्रवचन प्रायः आगम सिद्धान्तों पर ही हुआ करते थे। आपने मेवाड़ के सातसौ गाँवों में घूमकर दया धर्म का खूब प्रचार और प्रसार किया ।
मुनि जीवन के प्रेरक प्रसंग नेत्र रोग की अमोघ औषधी:
मुनि धर्म का पालन करते हुए तपस्वीजी शेषकाल में 'राजाजी का करेड़ा" नामक गांव में पधारे । उस समय सहसा पूर्व संचित भसाता-वेदनीय कर्म के तीव्रोदय से आपको नेत्र रोग हो गया । आप ने इस रोग के आक्रमण पर शुरू में उसकी कुछ भी पर्वाह नहीं की। वे. स्वेच्छापूर्वक धारण किये हुए अनशनादिक तपों के अवसर पर भी पूर्व अभ्यास के बल पर उसे भी सह रहे थे परन्तु वेदना-प्रतिदिन अपना उग्ररूप धारण करने लगी, नेत्र की ज्योति क्षीण होने