Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 757
________________ पू० श्रीरोडीदासजी म० भी दान देने की भावना कर रहा है । इस पशु में भी धार्मिक भावना का संचार हो गया है। तपस्वीजी ने सांड़ की धार्मिक भावना का आदर करते हुए उस गुड़ के मालिक से गुड़ लेने की आज्ञा मांगी। दुकान के मालिक ने भी भाज्ञा दे दी । तपस्वीजी ने. पात्र सामने किया और साँड़ ने साँग के द्वारा गुड़ को पात्र में डाल दिया। तपस्वीजी का अभिग्रह फल गया। साँड़-धन्य हो गया। मनुष्य तो दान देता ही है परन्तु पशु में भी दान देने की भावना जागृत हुई। ऐसे महापुरुष को दान देकर वह भी आज धन्य धन्य बन गया। तप की महिमा अपूर्व है। तपस्वियों के चरणों में देवी, देवता और मानव तो झुकते ही हैं परन्तु पशु भी नत मस्तक हो जाते हैं जिसका यह प्रत्यक्ष उदाहरण है। शत्रु के भी महान हितैपी इस प्रकार तपस्वीजी अनेक ग्राम नगरों को अपनी अमृतमयी वाणी से पावन करते हुए मेवाड़ के महाराणाओं के इष्ट देव 'एकलिङ्गजी" पधारे। वहाँ बहुत कम लोगों की वस्ती है। मन्दिर के कुछ कार्यकर्ता नौकर वर्ग वहाँ रहते थे। यहाँ के घने जंगल और प्राकृतिक पहाड़ी दृश्य मन को मुग्ध कर देते हैं। एकान्त ध्यान करने वाले के लिए यह स्थान वडा उपयोगी है। यहा पर वावा--योगी और सन्यासियों के बडे-बड़े अखाड़े हैं। ये अलमस्त साधु बाबा धूनी तपते, भंग, गांजा, चरस और तमाखू पीते यहाँ बडी संख्या में पढ़ें रहते हैं। तपस्वीजी ने अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य से युक्त अनुकूल स्थान को अपने ध्यान के लिए चुन लिया । इसी मन्दिर के समीप उन्होंने एकान्त में वृक्ष के नीचे अपना आसन जमा दिया और वे वहीं ध्यान करने लगे। एक गवार योगी को तपस्वीजी की उपस्थिति अखरी । वह तपस्वीजी को वहां से भगा देने के इरादे से कुछ गँवार वालकों को वहाँ ले आया,

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