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पू० श्रीमानमलजी म.
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लिया । गुरुदेव की सेवा और विद्याध्ययन बस उनका केवल यही एक लक्ष्य था और वे अपने लक्ष्य की ओर उत्साह के साथ बढ़ने लगे । मापने गुरुदेव के सहवास में रहकर शास्त्रों का गहन अध्ययन किया ।' आपके विनय गुण के कारण गुरुजन आप पर सदैव प्रसन्न रहते थे। 'विद्या विनयेन शोभते' यह वाक्य आपने अच्छी तरह हृदय में धारण, कर लिया था । विनय गुण, बुद्धि की तीव्रता और स्मरण शक्ति की प्रखरता के कारण आप अच्छे वका बन गये। आपके व्याख्यान सदा वैराग्य रंग में रंगे हुए होते थे। यति की देव साधना:--
पूज्य गुरुदेव के साथ विहार करते हुए आप एक बार सिरोही मारवाद शहर पधारे और लौकागच्छ के यतियों के उपाश्रय में ठहरे। उस समय एक यति भैरव की साधना कर रहा था उसकी साधना का यह अन्तिम दिन था।
मध्याह्न के समय यति पूज्यश्री के पास आया और धार्मिक चर्चा. करने लगा। उस समय पूज्यश्री की सेवा में मुनि मानमलजी बैठे हुए थे। थति की दृष्टि मुनि मानमलजी पर पड़ी। विशाल भाल उन्नत ललाट और तेजस्वी मुख देख कर वह गुरुदेव से बोला-स्वामीजी ! आपका यह शिष्य बड़ा भाग्यशाली और होनहार प्रतीत होता है यह अवश्य जैन धर्म की उन्नति करनेवाला होगा मुझे इसकी भव्यता बड़ी पसन्द आई । मेरी प्रार्थना है कि आज के जनजीवन में चमत्कार की बढ़ी भावश्यकता है। चमत्कार को ही दुनियाँ नमस्कार करती है। जैन शासन की प्रभावना करने वाले मुनि विरले ही होते हैं। मै एक देव की साधना कर रहा हूँ। आज आखिरी दिन है इसलिये आप इस मानमलजी मुनि को मेरे पास बैठने की आज्ञा दीजिये। गुरुदेव बोले-. यतिजी! संयमी मुनि का यह काम नहीं है । मुनि मंत्र-तंत्रादि सावध प्रवृत्ति में नहीं पड़ते। जिसका अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म में मन लगा रहता है देवता स्वयं ही भाकर उसकी सेवा करते हैं ।