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श्री जोधराजजी म० नहीं रहता । युवक जोधसिंह ने संकल्प कर लिया कि 'मैं संसार के स्वार्थमय माया जाल में न फंस कर वीतराग प्ररूपित त्याग मार्ग का ही भाराधन करूँगा । ये त्यागी मुनि वास्तविक सुख की प्राप्ति के लिये जो मार्ग बताते हैं उसी पर चलकर मै भी सुख का साक्षात्कार करूँगा" इस प्रकार दृढ़ निश्चय कर आपने अभिभावकों से किसी प्रकार आज्ञा प्राप्त करली।
संवत् १९५६ मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी के दिन आपने रायपुर (मेवाड़) में भागवती दीक्षा अंगीकार को और आपने अपने को अब मुनि श्री, कस्तुरचन्दजी महाराज का शिष्य घोषित किया । आपका दीक्षा महोत्सव का खर्च रायपुर संघ ने उठाया और दीक्षा की विधि श्रीमान् सीतारामजी चोरड़िया ने की। श्रीमान् सीतारामजी चोरडिया बड़े उदार दिल के एवं अत्यन्त धर्मशील व्यक्ति थे।। - दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् आपने पूज्य महाराजश्री के पास विद्याध्ययन आरभ किया । बुद्धि, प्रतिभा, विनय, परिश्रम और गुरुदेव की कृपा के कारण आपने शीघ्र ही अच्छी योग्यता प्राप्त करली। पूज्यश्री जैसे समर्थ विद्वान आचार्य गुरु हों और आप जैसे प्रतिभा सम्पन्न शिष्य हों तो उस अध्ययन की वात ही क्या ! मापने पूज्य श्री की निरन्तर सेवा करते हुए शास्त्रों का गम्भीर अध्ययन कर लिया ।।
ज्ञान की आराधना के साथ ही साथ आपने तप का आराधनभी आरम्भ कर दिया था । अतएव भापके जीवन में तपश्चर्या और त्याग की प्रधानता दृष्टि गोचर होती थी। आपने लगातार १४ वर्ष तक सायंकाल में कभी गरम भोजन नहीं किया। आपने एकान्तर बेला तेला पाच आठ आदि कई दुष्कर तपस्याएँ की । आपका कण्ठ वड़ा मधुर था । शास्त्र का अध्ययन भी गहरा था अतः आपके व्याख्यान देने की शैली बड़ी रोचक थी । आपके उपदेश में आडम्बर को लेशमात्र भी स्थान नहीं था क्योंकि आपके उपदेश में जनरंजन के स्थान में कुमति निकंदन का ही प्रधान लक्ष्य था । आपकी आत्माभिमुख