Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 799
________________ श्री मांगीलालजी म. विषयों का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त किया । आपके ज्ञान, विनय और संघ' संचालन की शक्ति व प्रतिभा को देखकर श्री संघ ने आपको मेवाड़ संप्रदाय का अधिनायक बनाने का निश्चय किया तदनुसार चतुर्विध संघ ने मिलकर वि० सं० १९९३ में मुनि श्री मोतीलालजी म. सा. को भाचार्य पद एवं आपको युवाचार्य पद से विभूषित किया । इस भाचार्य और युवाचार्य पद महोत्सव का सारा श्रेय लावासरदारगढ़ संघ को प्राप्त हुआ। युवाचार्य पद प्राप्ति के बाद आपने भारत के कई प्रान्तों में विहार कर दया-धर्म का प्रचार किया। आप ने अपने विहारकाल में अनेक शासन प्रभावक कार्य किये। सत्ता का त्याग ‘मानव सत्ता का दास है। अधिकार लिप्सा का गुलाम है। गृहस्थ जीवन में क्या, साधु-जीवन में भी सत्ता मोह के रङ्ग से छुट. कारा नहीं हो पाता है। ऊँचे से ऊँचे साधक भी सत्ता के प्रश्न पर पहुँच कर लड़खड़ा जाते हैं। पूज्य गुरुदेव को युवाचार्य पद के पश्चात् जो कटु अनुभव हुए उससे उन्होंने निश्चय किया कि अगर तुझे ,मात्म साधना करनी है तो पद-अधिकार के प्रपंच से दूर रहना होगा। ख्याति केवल जनता की सास है और वह प्रायः अस्वास्थ्य जनक होती है। गुरु ने पद त्याग करने का निश्चय किया। दीक्षा का अवसर था। हजारों जनसमूह एकत्र था। पदवी त्याग का उपयुक्त भवसर देखकर आपने चतुर्विध संघ के समक्ष शान्त मुद्रा से यह घोषित किया कि "मै युवाचार्य पद का त्याग कर रहा हूँ । इतना ही नहीं भविष्य में भी मुनिपद के सिवाय अन्य किसी भी पद को प्रहण नहीं करूँगा।" गुरुदेव की इस अचानक घोषणा से समस्त संघ" भावाक् हो गया। गुरुदेव के इस महान त्याग की जनता मुक्त कण्ठ प्रशंपा करने लगी। धन्य है ऐसे सन्त को जो चारित्र धन के रक्षण के लिए इतना बड़ा त्याग करते हैं।

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