________________
श्री मांगीलालजी म०
५७
भपनी कीर्तिमयी गौरवगाथा के कारण उस जिले में प्रसिद्ध रहा है। इसी वंश में श्रीमान् गम्भीरमलजी उत्पन्न हुए थे। उनकी पत्नी का नाम मगनबाई था । दोनों पतिपत्नी अत्यन्त धर्मपरायण थे। पुण्योदय से वि. सं. १९६७ पौष वदि अमावस्या गुरुवार के दिन मग-नवाई ने एक बालक को जन्म दिया । वालक का नाम 'मागीलाल' रखा गया। माता पिता अपनी एक मात्र और चिर प्रतीक्षित सन्तान होने से इसे लाड-प्यार से रखने लगे।
जब मांगीलाल पांच वर्ष के हुए तव इनके पिता श्रीमान् गम्भीरमलजी को मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु से बालक मांगीलाल एवं उनकों माता श्री मगनबाई पर वज्र टूट पडा किन्तु उसने अत्यन्त धैर्य के साथ इस संकट का सामना किया ।
प्यारचन्दजी साहब संचेती (हा मु. अहमदावाट) के पिताजी 'श्रीमान् छोगालालजी जो कि बालक मागीलाल के काका होते थे उनकी देख रेख में अपनी माता के साथ भागीलाल वृद्धि पाने लगा।
मगनवाई के धर्म संस्कार प्रतिदिन जागृत हुए जा रहे थे। उनके जीवन का यही लक्ष्य रह गया था कि बालक को अधिक से अधिक शिक्षित और संस्कारी वनाना और अपना शेष जीवन धर्म ध्यान में विताना । तदनुसार सामायिक प्रतिक्रपण गौर सन्त-सती समागम में मगनवाई का समय बीतने लगा। मेवाड़ संप्रदाय की सतियों का आवागमन राजकरेड़ा में होता रहता था उनके उपदेश श्रवण से मगनवाई के हृदय में धर्म भावना हिलोरे लेने लगी । चरित्रनायक की माता मगनबाई सती शिरोमणि प्रवर्तिनी श्री फूलकुंवरजी की सुशिष्या शृङ्गार कुँवरजी के परिचय में आई। इनके धार्मिक उपदेशों ने माता तथा 'मांगीलाल के हृदय में त्याग और वैराग्य की भावना उत्पन्न की । पुण्यो‘दय से जैनधर्म के महान आचार्य श्री एकलिंगदासजी म. सा. का नगरमें पदार्पण हुआ। इनके वैराग्य पूर्ण उपदेश से इन दोनों का हृदय वैराग्य रङ्ग से भर गया। माता मगनवाई ने पूज्य गुरुदेव के समक्ष