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श्री जोधराजजी म०
वैराग्यमयी वाणी श्रोताओं के हृदय में धर्म की आगृति, जैनागम पर अटूट श्रद्धा और आचरण में पवित्रता का संचार करती थी।
आप बड़े गुरुभक्त थे। गुरुमहाराज की अंगचेष्टा से ही उनके भाव को समझ लेते थे। आप अपने गुरुदेव को सच्चा मा बाप समझते थे । दीक्षा काल से पूज्यश्री के स्वर्गवास तक आपने केवल एक ही चातुर्मास उन्हीं की आज्ञानुसार अलग किया था । शेष आपने अपना सारा जीवन उन्हीं के सेवा में लगा दिया। ३१ वर्ष तक एकनिष्ठ होकर गुरुसेवा की । पूज्य श्री के अन्तिम समय में जो आपने शुश्रूषा की और उनके ओ भादेश शिरोधार्य किये उन से भाप की विनयशीलता का पूरा परिचय मिलता है ।
आप मेवाड़ संप्रदाय के आधार स्तंभ सन्त थे। आपके ने संप्रदाय के हित में अनेक महत्वपूर्ण काम किये । आपकी महत्वपूर्ण संप्रदाय सेवा से सारा मेवाड़ संप्रदाय आपका चिर ऋणी है। इन पंकियों के लेखक पर जो आपने उपकार किया संयम-मार्ग में दृढ़ किया उसे व्यक्त करना असंभव है । आपके ज्येष्ठ शिष्य मुनि श्री कन्हैयालालजी थे।
आपने ४२ वर्ष तक शुद्ध संयम का पालन किया । अन्त में वि. सं. १९९८ की आश्विन शुक्ला ५ शुक्रवार के दिन १२ प्रहर का चोविहार संथारा कर परलोक के लिये प्रयाण कर गये । आपके देहावसान से मेवाड़ संप्रदाय का जगमगता सितारा अस्त होगया । एक दिव्य विभूति समाज के सामने से सदा के लिए लुप्त होगई ।
गुरुदेव श्री मांगीलालजी महाराज आदरणीय महामुनि श्री मांगीलालजी महाराज का जन्मस्थान भीलवाड़ा जिलान्तर्गत 'राजाजी का करेड़ा' है। राज करेडा यद्यपि भाज अपनी आर्थिक दशा से बहुत विशाल नगर तो नहीं रहा पर जैन संस्कृति की दृष्टि से तो उसका अपना महत्व आज भी यथावत् है। यहाँ ओसवालों की अच्छी संख्या है । इन पोसवालों में संचेती वंश