Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 798
________________ श्री मांगीलालजी म. 'दीक्षा ग्रहण करने की अपनी भावना प्रकट की। माँ का आदर्श मार्ग बालक मांगीलाल को भी पसन्द आया। फलस्वरूप रायपुर मेवाड़ में पूज्य श्री एकलिंगदासजी महाराज के समीप सं० १९७८ को वैशाख शुक्ला तीज गुरुवार के दिन बड़े ठाठ बाट से इनकी दीक्षा विधि समाप्त हुई। मांगीलालजी आचार्य के शिष्य बने और मगनबाई महासती श्री फूलकुँवरजी की शिष्या बनीं। - गुरु महाराज इनकी बाल्यकालिक प्रतिभा से पूर्णतया प्रभावित -थे। अतः इन्हें सेवारत पं० मुनि श्री जोधराजजी महाराज सा. को सौंपा, और निर्देश दिया कि इनकी शिक्षा का दायित्व आप पर है। पं० मुनि श्री जोधराजजी महाराज इस समय मेवाड़ संप्रदाय के मुनियों में विद्वान शास्त्रज्ञ एवं संयमशील सन्त माने जाते थे। अपनेः उग्र तप और त्याग के कारण इन्हें लोग मेवाड़-केशरी भी कहते थे। आचार्य महाराज का विश्वास ये सम्पादित कर चुके थे। इनके सानिध्य' में रहकर मुनि श्री मांगीलालजी शास्त्राध्ययन करने लगे । साथ ही पूज्य गुरुदेव की सेवा भी वड़ी तत्परता से करने लगे। नौ वर्ष तक मुनि श्री मांगीलालजी ने पूज्य गुरुदेव की सेवा की। संवत १९८७ की श्रावण कृष्णा तीज को पूज्य गुरुदेव श्री एकलिंगजी म. सा. के स्वर्गवास से इनके दिल पर जो आघात लगा वह अवर्णनीय है। वे अनाथ से हो गये। पर क्या किया जाय ? तीर्थड्वर और चक्रवर्ती जैसे महाशक्तिशाली भी इस काल कराल से नहीं बच सके। सभी को एक दिन इस पथ का अनुगामी वनना है यह समझ कर संयम की साधना में आप तन्मय हो गये। ऐसे महान पंडित एवं तेजस्वी गुरुदेव का संग स्नेह और साहचर्य पाकर कौन कङ्कर शंकर नहीं बनेगा । चरित्रनायकजी तो जिज्ञासु, 'विनयी, बुद्धिमान, गुरु आज्ञा पालक थे ही। आप गुरु महाराज की निश्रा में बराबर उनके स्वर्गारोहण तक बने रहे और स्वाध्याय विद्याभ्यास में खूब उन्नति को। आपने संस्कृत, प्राकृत आदि

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