Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 781
________________ पू० श्रीएकलिंगदासजी म० - - किसी प्रकार का अन्तर नहीं पड़ता था । व्याख्यान देना, खड़े रहकर घंटों तक ध्यान और स्वाध्याय करना ये भापके नियमित कार्य थे। ___संवत् १९६१ को फाल्गुन कृष्णा भष्टमी के दिन भाप चैनपुरा । (मेवाड़) में अनशन पूर्वक समाधि में रहते हुए काल धर्म को प्राप्त हुए। अपनी आदर्श सेवा-परायणता, गुरु भक्ति और तप-त्याग से • आप कभी भी भूले नहीं जा सकते । फूल की सुगन्धि क्षणिक होती है किन्तु गुणों की सुगन्धि चिर स्थायी और चिर-नवीन होती है। इस नाशवान पार्थिव शरीर से और क्या लाभ उठाया जा सकता है। इसे हमें संयम का और मुक्ति के मार्ग का ही साधन वनालेना चाहिये। • पूज्यश्री वेणीचदजी महाराज ने यही किया जो और लोग कम कर पाते हैं । कहने के लिए भले ही हम आपको स्वर्गवासी कह दें किन्तु - वास्तविक वास नो आपका भक्कों के हृदय में है इसलिए कौन इन्हें स्वर्गवासी कह सकता है ? __ पूज्य श्री एकलिंगदासजी महाराज जैन संस्कृति में भाचार्य का विशेष महत्व रहा है । तीर्थकरो के अभाव में आचार्य ही चतुर्विध संघ का नेतृत्व करते हैं । 'दीवसमा आयरिया' इसीलिए आचार्य को दीप की उपमा दी गई है। श्रद्धेय पूज्य श्री एकलिंगदासजी महाराज ऐसे ही एक महान आचार्य थे जिन्होंने वीर भूमि मेवाड़ में जन्म लेकर इस भूमि की पुण्य ख्याति - में वृद्धि की। ___आपकी जन्मभूमि निम्बाहेड़ा जिले में संगेसरा नामक गाँव है। इस गाव में भोसर्वशीय छोटे साजन सहलोत गोत्रीय श्रीमान् शाह शिवलालजी रहते थे। आपकी धर्मपत्नी पतिभका श्रीमती सुरताबाई थीं। दोनों दम्पति कुलमर्यादा के पोषक एवं धर्म में दृढ़ श्रद्धालु थे। धार्मिकवृत्ति होने के कारण पतिपत्नी का जीवन पवित्र और सुखी था । संवत् १९१७ की जेष्ठ मास को अमावस्या रविवार की रात्रि

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