Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 780
________________ श्रीवेणीचन्द्रजी म. स्वाध्याय में बैठ गये । तप के प्रभाव से तीसरे दिन पैरों की सूजन सर्वथा मिट गई । शरीर पूर्ववत् स्वस्थ हो गया । आप अब अच्छी तरह चलने फिरने लगे । चौथे दिन पारणा के लिए आप गोचरी के लिए उपाश्रय के बाहर निकले । बुजुर्गों से सुना जाता है कि उस समय आप पर भाकाश से केशर की वृष्टि हुई थी। इस चमत्कार को देखने के लिए सारा गांव एकत्र हुआ। गांव वाले लोग महाराजश्री के आस पास केशर विखरी हुई देख कर बड़े चकित हुए । तपस्वीजी की जय जय कार से सारा गांव गूंज उठा। लोगों के मस्तक पूज्यश्री के चरणों में झुक गये । महापुरुषों के पुण्य-प्रसाद की यही तो महिमा होती है । वे स्वयं तो महिमावान् होते हैं और औरों को भी महिमावान् बना डालते हैं । इस चमत्कार पूर्ण घटना का व महिमा का आप पर किंचित् भी असर नहीं हुआ । आप उस अवस्था में भी पूर्ववत् शान्त तथा नम्न दृष्टिगोचर होते थे। कालान्तर में आप के दो शिष्य हुए। एक पूज्य श्री एकलिंगदास जी महाराज साहब जिनका परिचय इसी चरित्र माला में दिया गया है। दूसरे शिष्य तपस्वी श्री शिवलालजी महाराज हुए। शिवलालजी महाराज सचमुच शिव की ही मूर्ति थे। तपस्या ही आप के जीवन का लक्ष्य था । आपने अपने जीवन काल में निम्न बड़ी बड़ी तपस्या की थीं'. तपस्या-३५-४२-४५-५२-५७-६१ का थोक । इसके अतिरिक्त छोटी छोटी तपस्याएँ आपने बड़ी मात्रा में की । गुरुदेव श्री वेणीचन्दजी महाराज के सानिध्य में रहकर आप ने जो गुरुभक्ति का परिचय दिया वह अपूर्व था। विक्रम संवत १९७९ में आप अनशन पूर्वक रायपुर शहर में स्वर्गवासी हुए। पूज्य श्री वेणीचंदजी महाराज सच्चे क्रियापान सन्त थे । कठोर तप और क्रिया का पालन करते हुए भी आपके दैनिक कार्यक्रम में

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