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पू० श्रीमानमलजी म..
पूज्यश्री के स्वर्गवास के शोक समाचार सारे मेवाड़ में तत्कालीन साधनों द्वारा पहुँचाये गये । आसपास के गांव वाले बड़ी संख्या' में पहुँच गये । सब के चेहरे फीके पड़े हुए थे । सब की आँखें अपने प्रिय गुरुदेव के वियोग में अश्रुधारा बहा रही थीं । अन्त में एक बड़ी अच्छी तरह से सजाये हुए देव तुल्य विमान में पूज्यश्री के देह को प्रतिष्ठित करके पूज्यश्री को अग्नि संस्कार के लिये बड़ी धूमधाम से ले जाया गया और चन्दन खोपरा खारक घी. की? चिता में विराजमान करके आपके शरीर का दाह संस्कार किया गया। उस समय आश्चर्य यह हुआ कि पूज्य श्री का सारा देह अग्नि में भस्म हो गया किन्तु उनकी चद्दर यथावत् रह गई । प्रज्वलित आग के बीच भी चद्दर को अखंडित देखकर उपस्थित समाज चकित रह गया। उस चद्दर को स्थानीय संघ ने बहुत समय तक अपने यहाँ ही रखा। बाद में उसकी विशेष सुरक्षा हेतु उसे सलौदा के पुजारी को दे दिया । यह चद्दर आज भी अपनी जीर्ण शीर्ण अवस्था में तपस्वी, जी की याद दिला रही है । तपस्वीमी श्रीमानजीस्वामी का जन्मा दीक्षा और स्वर्गवास कार्तिक शुक्ला पंचमी को ही हुआ था। ऐसा योगा बहुत कम मिलता है। यह भी कम आश्चर्य जनक नहीं है ।।
सब नागरिकों के मुख से पूज्य श्री मानमलजी महाराज की प्रशंसा के शब्द सुनाई देते थे। उनके चमत्कार व प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व की सर्वत्र चर्चा चलती थी। जनता को अनुभव हुआ कि आज एक सच्चे त्यागी, उच्चसंयमी, कठोरतपस्वी एवं महान् सन्त का सदा के लिये वियोग हो गया । इसके कारण न केवल जैन समाजा की बल्कि समस्त धार्मिक जगत की ऐसी महती क्षति हो गई जिसकी. पूर्ति होना कठिन है । एक अलौकिक पुरुष भूलोक से स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गया । धार्मिक जगत का एक ज्योतिधर नक्षत्र अस्ता; हो गया ।