Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 777
________________ पू. श्रीमानमलजी-म. -मन वचन काया से किसी के मन को आघात पहुँचाया हो तो उसके लिये मै आप सब से क्षमा याचना करता हूँ । भाप लोगों से मेरा अन्तिम निवेदन है कि आप लोग अपने संयम का उत्कृष्ट भाव से पालन करें और आपस में मेल मिलाप रखें" इतना कहने के बाद यूज्यश्री ने चारों आहार और अठारह पाप स्थानों का परित्याग किया भौर ऊँचे स्वर से 'अरिहंत भरिहन्त' बोलते हुए सदा के लिए अन्त‘ान होगये। वे चले गये और अपने शिष्यों को संयम का, समता का, धर्मदृढ़ता का और विश्ववात्सल्य का कभी नहीं छीना जाने वाला अमूर्त मात्मधन सौंप गये। पूज्यश्री के स्वर्गवास से सारा मेवाड़ मूक वेदना का अनुभव करने लगा । पूज्यश्री के स्वर्गवास का जो भी समाचार सुनता वह चकित और अवाक् सा रह जाता । अभी कल शाम को तो प्रसन्नवदन से सव के साथ बातें कर रहे थे। प्रातः कालीन प्रतिक्रमण भी किया था । साधु श्रावकों को पचक्खान भी करवाये थे इतने में क्या होगया ? नहीं यह बात झूठी होगी ! परन्तु आखीर में -सब को इस सत्य के सामने झुकना पड़ा । शोक 1 महाशोक !! जैन समाज का सिरताज समाज को अनाथ करके स्वर्ग को सनाथ बनाने के लिये चला गया। सारे शहर में हाहाकार मच गया। जिसने भी सुना वही स्थानक की ओर भागा चला आया । हिन्दू से लेकर मुसलमान तक शायद ही ऐसा कोई अभागा व्यक्ति शहर में रह गया होगा जिसने इस महास्थविर के अन्तिम दर्शनों के लिये अपने आपको उपस्थित न किया हो । जो कोईभी देखता वह यही कहता--इन महात्मा ने तो समाधि धारण कर रखी है, देखो तो, चेहरे पर किसी प्रकार का फर्क नहीं पड़ा है ! वैना ही तेज, वैसी ही आभा है । इनको स्वर्गवास कर गये कहना हमें तो भूल भरा प्रतीत होता है। साराश कि एक बार तो देखने वाले को भ्रम अवश्य हो जाता था।

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