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पू० श्रीएकलिंगदासजी म?
बात री परस्सति कायम कर दी जावेगा । ताके अमुमन लोगों को भी खयाल रेवेगा के अठे जीव हिंसा नहीं होते है। और जीव हिंसा न हो बाकि भोपा को भी हुकम दे दीदो है इ वास्ते थाने आ खातरी लीख देवाणी है । सं. १९७४, दुती भादवा सुदी १
दः केशरीमल कोठारी रावला हुकुम खातरी लिख दी है।"
इस चातुर्मास काल में कई बड़े बड़े उपकार हुए। तदनन्तर सं. १९७५ का चातुर्मास जावरा (मालवा) में हुआ। सं. १९७६ का चातुमांस सनवाड में एवं स. १९७७ का चातुर्मास नाथद्वारा में हुमा । यहां चातुर्मास काल में २००० हजार बकरों को अमर किया गया। चातुर्मास के बाद आप विहार करके राजाजी के करेडे पधारे । वहाँ से भाप रायपुर पधारे। यहां पावनमूर्ति श्रीमांगीलालजी महाराज एवं उनकी मातुश्रीमगनवाई की दीक्षा बैशाख सुदी २ को बड़े समारोह
के साथ हुई। पं. मुनि श्रीमागीलालजी महाराज की जीवनी इसी चरि. तमाला के साथ संक्षेप में दी गई है।
इसके बाद आपने सं. १९७८ का चातुर्मास देलवाड़ा, सं. १९७९ का रायपुर, स. १९८० का देवगढ़, सं. १९८१ का चातुर्मास कुंचारिया, स. १९८२ का आकोला, स. १९८३ का उंटाला, सं. १९८१ का छोटी सादड़ी, सं. १९८५ का रायपुर एवं स. १९८६ का मावली में हुमा। स. १९८७ का चातुर्मास आपने उंटाला में किया। अन्तिम यात्रा___ संवत् १९८७ का चातुर्मास करने के लिये पूज्यश्री उंटाला पधारे। इस चातुर्मास में आपके शरीर पर रोग का भाक्मण हुआ। औषधोपचार पर भी शान्ति न हो सकी। इस वर्ष माप प्रार. अस्वस्थ्य ही रहा करते थे। चातुर्मास काल में व्याधेि ने खूब जोर पकड़ा। उस समय भापकी सेवा में आठ सन्त थे। इन सन्तों में पं. श्रीजोधराजजी महाराज को सेवा-भक्ति सर्वोपरि थी। रातदिन गुरुदेव की सेवा में उरस्थित रहकर उनकी सेवा में रत रहते थे। एक क्षण के लिए भी