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पू० श्रीएकलिंगदासजी म. वे गुरुदेव को नहीं छोड़ते थे। भयंकर व्याधि और असह्य पीड़ा होने पर भी पूज्यश्री आत्मा और देह के विनश्वर संयोग का विचार करते हुए शान्ति के साथ वेदना सहन करते थे। पूज्यश्री इस रुग्ण अवस्था' में भी अपनी मानसिक दृढ़ता के कारण प्रातःकाल और रात्रि के प्रतिक्रमण बड़े ध्यान से सुनते थे। सावन वदि २ के दिन प्रातःकाल आपकी वेदना और भी बढ़ गई । सैकड़ों श्रावक पूज्यश्री की सेवा में उपस्थित हो गये। पूज्यश्री ने उत्तरोत्तर कमजोरी बढ़ती हुई देखकर संथारा ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की। पूज्यश्री की इच्छा के अनुः सार संघ की सम्मति से उन्हें आलोचना पूर्वक संथारा कराया गया। पूज्यश्री ने समस्त संघ से क्षमा याचना की और पंचपरमेष्ठी के ध्यान में लीन हो गये। अन्ततः नौ वजे पूज्यश्री का आत्मा रूपी हंस स्वर्ग रूपी मानसरोवर की ओर उड़ गया।
पूज्यश्री के स्वर्गवास के समाचार बिजली के वेग की तरह सर्वत्रा फैल गये और शोक के बादल छा गये। पूज्यश्री का यह सदा का वियोग सब के हृदय में चुभ रहा था। सबका हृदय रो रहा था। सचमुच सारा संघ इस अनमोल रत्न के छिन जाने से अपने आपको दीन हीन और अनाथ सा अनुभव करने लगा।
प्राण विसर्जन के समय पूज्यश्री का मुखमण्डल अनुपम शान्ति से शोभायमान था। उस शान्त मुद्रा को देखने के लिए गांव के एवं आसपास के गांव वाले हजारों की संख्या में एकत्रित हुए । श्रद्धालु नरनारी पूज्यश्री की सौम्य मुद्रा का अन्तिम दर्शन कर अपनी श्रद्धां'जलि समर्पित कर रहे थे।
पूज्यश्री का शव तीन खण्ड के सुन्दर विमान में रखा गया। शवयात्रा का विमान बड़े समारोह के साथ स्मशान की ओर ले जाया गया । स्मशान में पहुँचने के बाद घी, चन्दन, खोपरा एवं कपूर आदि सुगन्धित द्रव्यों से पूज्य श्री के शव का अभिसंस्कार किया गया है। पूज्यश्री के नश्वरं देह को अग्नि भस्मसात् कर गई किन्तु उनके यशः