Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 789
________________ ४९ पू० श्रीएकलिंगदासजी म. सद्गुणों में सम्पन्न है तो केवल बाल ब्रह्मचारी पं. मुनि श्री एकलिगदास जी महाराज साहब ही हैं अतः इन्हीं को पूज्य पदवी प्रदान की जाय। सभी चतुर्विध संघ को यही राय हुई। ___ इस महान कार्य के लिये रासमी श्रीसंघ ने अपने यहां होने की प्रार्थना की । इसकी मंजूरी भी हो गई । तव रासमी में फाल्गुन सुदी ७ को आचार्य पद महोत्सव करने का निश्चय किया । संयोगवश उस समय रासमी में प्लेग का दौरा चल पड़ा । तब मुहूर्त में परिवर्तन करके सं. १९६८ को ज्येष्ठ शुक्ला ५ गुरुवार के दिन पद महोत्सव कायम किया । भामत्रण पत्र जगह जगह मेजे गये। नियत, समय पर बाहर गाव के करीव २००० स्त्री पुरुष रासमी मे इकटे हए । सन्त सतियों में कुल ३५ ठाने उपस्थित थे । महान समारोह के साथ मुनि मण्डल और महासतियाँजी प्राम के वाहर पधारे। बाहर वगीचे में आम्र वृक्ष के नीचे विशाल पट्ट पर होने वाले आचार्य प्रवर को मासीन किया। उस अवसर पर करीब चार हजार स्त्री पुरुषों की उपस्थिति थी। भावी आचार्य मुनियों के साथ तारा मण्डल के वीच चंद्रमा को तरह सुशोभित हो रहे थे। उस समय मुनि श्रीकालुरामजी महाराज ने पूज्य पछेवड़ी अपने हाथ में ली और खड़े होकर उद्बोधन किया कि "इस पछेवड़ी को लज्जा श्रीसंघ के हाथ में है। सकल संघ से यह निवेदन है कि वह संप्रदाय को अधिक से अधिक उन्नत बनाने के लिये निम्न तीन नियमों का पालन करे (१) गादीवर को निश्रा में ही सब सन्त दीक्षित हों। (२) सन्त और सतियाँ चातुर्मासिक आज्ञा पूज्यश्री से ही हैं। (३).संप्रदाय से बहिष्कृत सन्त सतियों को आदर न दें। सकल सघ ने तीनों नियमों को मान लिया। तदनंतर सव मुनियों सपळेवड़ी को उसके पल्ले पकडकर चरितनायकजी के भव्य कन्धों पर ओढ़ाई। 'शासनदेव की जय' 'आचार्यदेव, पूज्यश्री एकलिंगदासजी महाराज की जय'

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