Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 785
________________ पू० श्रोएकलिंगदासजी म० मुनिश्री का प्रवचन सुनने लगे। उनके प्रवचन ने श्री एकलिंगदासजो के हृदय में रहे हुए वैराग्य के बीज को अंकुरित और पल्लवित कर दिया । आपका चित्त संसार से एकदम विरक्त हो गया । आपने एक दिन व्याख्यान के बीच खड़े होकर मुनि से विनम्र प्रार्थना की तरण तारण गुरुदेव ! आपके उपदेश ने मुझे जागृत कर दिया है। मै जन्म, जरा, व्याधि आदि के दुःखों से अत्यन्त संतप्त हूँ अत.. एव अब आप मुझे भी प्रभु के मार्ग में दीक्षित कर मेरा उद्धार कीजिये । उस समय हमारे चरितनायक की उम्र तीस वर्ष की थी। उभरती हुई जवानी में त्याग मार्ग की बात सुनकर सभी उपस्थित जनसमूह स्तब्ध हो गया । भाई मोडीलालजी को जब इस बात का पता चला तो वे दौड़े हुए वहाँ आये और चरितनायकजी से बोले-भाई । यहाँ कौनसी कमी है जो तुम साधु बनने की सोच रहे हो? मैं तो तेरे लिये नववधू लाने के स्वप्न देख रहा हूँ। एकलिंगदासजी ने धीमे स्वर में कहा-मेरे पूज्य भाई ! आपकी शीतल छाया में दुःख की दोपहरी का अनुभव नहीं हो सकता फिर भी किसी से जन्म मरण की पीड़ा को भुलाया नहीं जा सकता । उसके लिये मुझे यह घर का मोह तो छोड़ना ही होगा। त्याग और राग में विरोध होता ही है । आपके इन विचारों - के कारण वन्धु बान्धवों ने दीक्षा के विरुद्ध प्रपंच फैलाना शुरू कर कर दिये । 'श्रेयासि बहु विघ्नानि' इस उक्ति के अनुसार आपकी दीक्षा रोकने के कई प्रपंच किये परन्तु जिस व्यक्ति की तीन भावना होती है उसे कौन कब तक रोक सकता है ? आपने अत्यन्त शान्त और निश्रल भाव से सबको समझाया । अन्ततः आपके दीक्षा के उत्कृष्ट - भाव के सामने सबको नत मस्तक होना पड़ा । परिणाम स्वरूप भाई मोडीलालजी ने अत्यन्त दुखी हृदय से दीक्षा का आज्ञापत्र लिख दिया। मापकी दीक्षा का मुहूर्त फागुनसुदी १ का तय हुमा । दीक्षा का समय

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