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पू० श्रीमानमालजी म.
“र्वाद चाहिए। मुनि ने उन्हें उपदेश दिया। मुनि के उपदेश से प्रभा"वित होकर उन्होंने सदा के लिये चोरी करना छोड़ दिया। यह थी 'मानमलजी महाराज की तेजस्विता !
महामानव मानमलजी महाराज वचन सिद्ध महापुरुष थे। शुद्धचारित्र के पालन से आपके वचन में ऐसा प्रभाव आ गया था कि -आपकी वाणी से कठिन से कठिन कार्य भी सरल बन जाते थे। किसी
आपत्ति में पड जाने पर सैकड़ों जैन और जैनेतर आपकी राह में आँखे बिछा देते थे। जनता का यह विश्वास था कि मानमलजी महाराज के प्रभाव से सब संकट दूर हो जाते है। अनेक दुखी व्याधि प्रस्त आपके पास आते और आपके चरणों की धूलि का पान कर व्याधि और पीड़ा
से मुक्त हो जाते थे। मुनिजी को यह मालूम भी नहीं होता कि - कौन क्या भावना लिये मेरे पास आता है। वे सहज भाव से रहते थे। उन्हें कोई आकर कहता-महाराज साहब मैं छ मास से दुःखी था। घर में बीमारी बनी ही रहती थी। व्यापार में नुकसान हो रहा था । न्यायालय में कई मुकदमें चल रहे थे किन्तु आपके पधारते ही • एक एक करके सब संकट टल गये। सब आपके चरणों की महिमा है।
मुनिवर फरमाते-"भाई ! यह सब धर्म का प्रभाव है । धर्म की माराधना में चित्त लगाओ । धर्म की आराधना करने से सभी संकट टल जाते हैं।" आपके वचन कभी निष्फल नहीं होते । आप जहाँ • भी जाते लोग आदर के साथ खड़े हो जाते और आपकी आज्ञा पाने की प्रतीक्षा करते । आप को कल्पवृक्ष की तरह मनोवांछित पूरा करने वाला महापुरुष मानते थे। आपके जीवन सम्बन्धी अनेक चमत्कार पूर्ण घटनाएँ आज भी मेवाड़ प्रांत में वृद्ध जनों के मुख से सुनने को मिलती -हैं उनका यदि संकलन किया जाय तो एक विशालकाय ग्रन्थ बन जावेगा फिर भी पाठकों की जानकारी के लिये कुछ चस्कार पूर्ण घटनामों का -उल्लेख करता हूँ