Book Title: Agam ke Anmol Ratna
Author(s): Hastimal Maharaj
Publisher: Lakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad

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Page 769
________________ पू. श्रीमानमलजी म० २९ मार्ग के सिवाय हमें किसी भी वस्तु की तमन्ना नहीं है। देव मुनि के इस उत्कृष्ट त्याग भाव पर बड़ा प्रसन्न हुभा और बोला-मुने! धन्य है आपको और आपके मुनिजीवन को। मै तो अब आपही की सेवा में रहकर अपने जीवन को पवित्र करूँगा । मुनिजी ने कहा-देव! जैसी तुम्हारी इच्छा। भौरवजी सदा के लिये नुनि भक्त बन गया। ___ कायर दिल का यति देव को अपने आधीन करने के बजाय सदा के लिये मृत्यु के आधीन बन गया। "देवावि तं नमसति जस्स धम्मे सया मणो" इस महावाक्य को मुनिजी ने चरितार्थ करके बता दिया । चोरों का हृदय परिवर्तन मुनिमण्डल ने सिरोही से मारवाड की ओर विहार किया । विहार करते हुए मार्ग में सशस्त्र डाकुओं ने मुनियों को घेर लिया। मुनियों के पास लेने के लिये कुछ था नहीं उन्होंने उनके वस्त्र ही छीनने शुरू किये । बारी बारी से एक एक मुनि के वस्त्र उतरवा ढाले । मान.. मलजी महाराज की भी बारी आई और वे उनके पास आकर कहने लगेअपने सब वस्त्र उतारकर हमें दे दो। मानमलजी मुनि ने डाकुओं से कहा- अच्छा ! ये वस्त्र पड़े हैं ले लो किन्तु मेरी तरफ भी तो एक बार देख लो। डाकू मुनि की मांखों की ओर देखने लगे। मुनि की आंखों से तेज निकल रहा था। उनका भव्य ललाट और आंखों की तेजस्विता देखकर डाकू पानी पानी हो गये। मुनिजी के आँखों में योग का आकर्षण था। डाकुओं ने सोचा-"यह भव्य पुरुप सामान्य व्यक्ति नहीं है। यह तपस्वी कहीं अपने तप तेज से हमें श्राप न दे दे।" डाकू स्तम्भित रह गये। डाकुओं को स्तब्ध देखकर मुनि ने कहा--क्यों, क्या हुआ ? आप वस्त्र की पोटली क्यों नहीं उठा रहे हो ? डाकुओं ने कहा--महाराज ! हमारी भूल हो गई। हम इन सब वस्त्रों को वापस कर रहे हैं। हमे ये वस्त्र नहीं चाहिए किन्तु आशी--

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