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पू० श्रीमानमलजी म.
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भूत का भाग जाना
मेवाड़ में 'विजरौल' नामका एक छोटा गांव है । वहां प्रायः ब्राह्मणों की ही बस्ती है। कुटुम्ब क्लेश के कारण एक ब्राह्मण आत्म'हत्या करके मर गया । परिणाम यह निकला कि वह मर कर भूत योनि में उत्पन्न हुमा। भूत वनकर वह मुख्य (सदर) दरवाजे के बीच उपद्रव करने लगा। पोल में रहनेवाले लोग भूत के उपद्रव से घबरा गये । लोग पोल को छोड़ अन्यत्र रहने चले गये । कुछ लोगों ने भूत को भगाने के लिए अनेक मंत्रवादियों का सहारा लिया । कई प्रकार के प्रयत्न किये किन्तु वे सब के सब निष्फल होगये । भूत का यह उपद्रव अव पोल तक ही सीमित न रहा। अब वह गांव में भी उपद्रव मचाने लगा । लोगों की यह धारणा होगई कि इस भूत के कारण ही इस गांव की प्रगति नहीं हो रही है। भूत के उपद्रव को दूर करने के विचार से गांव के वृद्ध जन एकत्रित हुए और आपस में विचार विमर्श करने लगे। उनमें से एक वृद्ध ने कहा-जैनों के गुरु मानजीस्वामी बड़े चमत्कारिक सन्त हैं । उनको यदि यहाँ ठहराया जाय तो अवश्य गांव का यह संकट टल सकता है । लोगों को यह राय अच्छी लगी । लोग जिस गांव में मानजीस्वामी विराजमान थे वहाँ गये और अपने गांव पधारने की विनती करने लगे। लोगों की भक्ति देखकर मानजीस्वामी ने उनकी विनती मान ली । महाराजश्री विहार कर "विजरौल" पधारे । गांववालों ने तपस्वी को भुतवाली हवेली में उतार दिया। तपस्वी का कदम ज्योहो हवेली में पड़ा भूत घबरा कर चीत्कार करता हुमा भाग गया । भूत का चीत्कार सुनकर मानजीस्वामी ने उपस्थित लोगों से पूछा--भाई। इस सुनसान हवेली में भूत रहता है ? लोगों ने सच्ची वात कह दी । उत्तर में स्वामीजी ने कहा-भाइयो! अब भाप लोगों का संकट टल गया है। इस हवेली में तो क्या किन्तु गाव में भी यह भूत नहीं रहेगा । हवेली के मालिक से कहा-भाई ! भव यह स्थल धर्म-ध्यान के लिये छोड़ देना । साधु सन्तों को यहाँ