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५० श्रीराडीदासजी म०
इस प्रकार का गुप्त लेख लिखकर वह पत्र आपने अपने रजोहरण में बान्ध दिया । प्रतिदिन भाप भाहार के लिये जाते और पुनः लोटकर चले आते । आपके अभिग्रह की सर्वत्र महिमा फैल गई। लोग अभिग्रह - नहीं फलता, तो बड़े चिन्तित हो जाते । सारे शहर में अभिग्रह की चर्चा थी। सभी अपने अपने इष्टदेव से तपस्वीजी के अभिग्रह को सफल होने की प्रार्थना करते । इस प्रकार अट्ठाइस दिन बीत गये ।
उनतीसवाँ दिन था । तपस्वीजी प्रतिदिन के नियमानुसार स्वाध्याय- ध्यान कर आहार के लिये चले । मार्ग में एकाएक कोलाहल सुनाई दिया। लोग अपनी अपनी जान बचाकर इधर-उधर भाग ने लगे। दौड़ो, भागो, हटो, यस, चारों ओर से यही आवाज और शोर सुनाई दे रहा था । वात यह थी कि महाराणा साहब का हाथी गजशाला से जंजीर तोड़कर बेकाबू हो गया था । उन्मत्त स्थिति में वह दौड़ा हुआ आ रहा था । तपस्वीजी उसी तरफ चलने लगे तो लोगों ने उन्हें रोका; आगे न जाने को लोग बार बार विनती करने लगे किन्तु तपस्वीजी ने उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया वे अविचल मुद्रा में यतना पूर्वक आगे बढ़ने लगे । उसी समय हाथी भागा हुआ एक कन्दोई (हलवाई) की दुकान पर भाया और उसने हलवाई की दुकान से अपनी झुंड से मिठाई उठाई और और तपस्वीजी की ओर बढ़ाई; तपस्वीजी ने झोली से पात्र निकालकर आगे बढ़ा दिया। तपस्वीजी ने हलवाई से मिठाई ग्रहण करने की आज्ञा प्राप्त कर ली । हाथी ने मिठाई तपस्वीजी के पात्र में ढाल दी' । सैकड़ों लोग इस दृश्य को देखकर चकित हो गये और तपस्वीजी की जय जयकार करने लगे । तपस्वीजी ने अपने अभिग्रह वाला वह गुप्त लेख
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श्रावकों को बतलाया । श्रावकों ने जब उस लेख को पढ़ा तो वे सब भाश्चर्य चकित हो गये । धन्य है ऐसे तपस्वियों को जिनके तपोबल से पशु में भी देवत्व आ जाता है ।
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