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प्र० श्रीरोडीदासजो म०
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साँड़ का दूसरा अभिग्रह
इसी प्रकार एक बार आपने सांड द्वारा आहार प्राप्त करने का दुष्कर अभिग्रह किया था और वह भी सफल हो गया । जिस की घटना इस प्रकार है
आप उदयपुर में विराज रहे थे। आपने यह अभिग्रह धारण किया था कि अगर मुझे सांड (बैल) आहार दे तो मैं पारणा करूँगा । इस प्रकार का लेख लिखकर उसे गुप्त रूप से अपने भौघे (रजोहरण) में बान्ध दिया ।
भाप प्रतिदिन समयपर गौचरी के लिए पधारते और थोड़ा समय घूमकर पुनः लौट आते । श्रावकों ने भी तपस्वीजी के भभिग्रह को सफल बनाने के लिए अनेकों प्रयत्न किये किन्तु उनके सब प्रयत्न असफल रहे। तपस्वीजी ने मनुष्य पर और वस्तुओं पर अभिग्रह तो अनेक बार किये थे और वे सफल भी हो गये थे किन्तु यह महापुरुष तो पशु पर. भी मानवता का प्रयोग करना चाहता था । इस प्रकार तीस दिन पूर्ण हो गये ।
इकतीसवें दिन तपस्वीजी प्रतिदिन के नियमानुसार आहार के लिए निकले । तपस्वीजी "धानमण्डी” के बीच आये। मार्ग में नौजवान दो-सांड (बैल) आपस में लड़ रहे थे। उनकी लड़ाई बड़ी खूखार थी । लोगों ने भी उनको छुड़ाने का भरसक प्रयत्न किया किन्तु वे भयंकर फूत्कार करते हुए एक दूसरे को नीचे गिराने का साहस कर रहे थे। तपस्वीजी निर्भीक होकर, लड़ते हुए सांड के पास पहुच गये । तपस्वीजी को सामने खड़ा देख सांडों का जोश ठण्डा पड़ गया। एक साँई तो वहाँ से चल दिया और दूसरे सांड ने पास ही की दुकान के सामने पड़ो हुई "गुड़" की भेली पर अपना सींग घुसेड़ दिया। सींग में गुड़ का कुछ हिस्सा लग गया । उसने तपस्वीजी को गुह देने को इच्छा से सींग को नीचे झुकाया सांड़ को नीचे झुकता हुआ देख तपस्वीजी समझ गए कि यह पशु