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पू० श्रीमानमलजी स्वामी पक्षी अपना वितंडावाद छोड़ नतमस्तक हुए बिना नहीं जाता था । भापके २७ प्रतिभाशाली शिष्यों में महान चमत्कारी योगात्मा श्री मानमलजी महाराज आपके पट्ट पर विराजे । पूज्य मानमलजी महाराज का जीवन परिचय इस प्रकार है--
महान तपस्वी पूज्यश्री मानमलजीस्वामी वीरभूमि मेवाड़ के जनवंय महातपस्वी मुनि श्री मानमलजी महाराज साहब की माता धन्नाबाई की गोद धन्य धन्य हो गई थी जिस दिन पुत्र मानमल ने जन्म लिया था। पिता का अतृप्त पितृत्व भी पुलक उठा था जब नन्हें नन्हें सुकोमल हाथ पैर हिलाते सुन्दर मुखाकृति वाले शिशु मानमल को तिलोकचन्द्रजी गान्धी ने अपने हाथों में प्रथम बार देखा था । संवत् १८८३ की कार्तिक शुक्ला पंचमी की उस शुभ घड़ी में जिस दिन इस अवनी पर मानमल ने जन्म लिया था सारा गान्धी परिवार आनन्द से नाच उठा था । बालक के जन्म से घर में मंगलाचार होने लगे और देवगढ़ (मदारिया) में सम्बन्धी जनों के यहाँ वधाइयाँ दी गई । बालक का नामकरण किया गया ।
बालक बड़ा भाग्यशाली प्रतीत होता था । इसका प्रशस्त और उन्नत भाल सबको आकर्षित करता था । शरीर पुष्ट और गौरवर्ण 'था। शरीर पर तेज-कांति सी छायी प्रतीत होती थी । वृद्धजन कहते थे कि यह वालक आगे जाकर वंश को उज्ज्वल करेगा और धर्म की सेवा करनेवाला होगा ।
वालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा साथ साथ श्री तिलोकचन्द्रजी गान्धी की प्रतिष्ठा व धन में वृद्धि होने लगी। जिस घर में धार्मिक और सुसंस्कारी माता पिता हों उस घर में पलनेवाले शिशुओं के संस्कार और संस्कृति में शंका कैसी ? फिर न्हाँ सर्व सुविधाएँ उपस्थित हों वहाँ शुभ योग में बाधाएँ कैसी ? पिता तिलोकचन्द्रजी ने तत्कालीन सुविधा के अनुसार बालक को शुभ मुहूर्त में स्कूल में भेजा । बालक व्युत्पन्नमति