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आगम के अनमोल रत्न
है। उसने नौकर को बुलाकर मूला के पास से चाबी मंगवाई । सेठ ने घर खोला । देखा, चन्दना का कहीं पता नहीं है । नौकरों से चन्दना के बारे में पूछताछ की। नौकरों ने सेठानी के डर से कुछ भी नहीं बताया । सब नौकरों को चुप देख कर सेठजी का धैर्य टूट गया । उसने उस दिन जो नौकरों को फँटकार बतायी, तो हिम्मत करके एक दासी ने सारी बात सच सच बता दी, और कहा-चन्दना सामने की कोठरी में बंद है । सेठ ने द्वार खोला तो भूख प्यास से पीड़ित म्लान-मुख चन्दना को देखा। वह समझ गया यह सब मूला की ही करतून है । उसकी आँखों में आँसू आ गये । चन्दना को भोजन देने के लिये श्रेष्ठी स्वयं रसोई घर में गया, लेकिन उस समय एक सूप में उबाला हुआ कुल्माष (उड़द) ही अवशिष्ट पड़ा था। उसे चन्दना को देकर, वह चन्दना की बेड़ी काटने के लिये लुहार वुलाने चला गया।
चन्दना उड़द के बाकुलों को लेकर खड़ी-खड़ी विचारों में लीन थी, और अपने अतीत के बारे में विचार कर रही थी। इसी समय उसके मन में विचार उठा कि मेरा तीन दिन का उपवास हो चुका है, यदि कोई अतिथि दिखलायी पड़े तो उसे दान देकर फिर पारणा करूँ । इस विचार से वह द्वार के पास आई और एक पैर द्वार के भीतर और एक पैर द्वार के बाहर रख कर द्वार पर बैठ गई ।
उन दिनों श्रमण भगवान महावीर छद्मस्य अवस्था में थे। कैवल्य प्राप्ति के लिये कठोर साधना कर रहे थे । लम्बी तथा उग्रतपस्याभों द्वारा अपने शरीर को सुखा डाला था। उस समय भगवान का निम्न तेरह बोल वाला अभिग्रह चल रहा था
राजकन्या हो, अविवाहिता हो, सदाचारिणी हो निरपराध होने पर भी जिसके पावों में बेड़ियाँ तथा हाथों में हथकड़ियों पड़ी हुई हों, सिर मुण्डा हो, शरीर पर काछ लगी हुई हो, तीन दिन का उपवास