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आगम के अनमोल रत्न -साध्वियों पर नेतृत्व करने लगी। आयुष्य पूराकर महासती चन्दना न निर्वाण प्राप्त किया ।
नन्दा आदि श्रेणिक की तेरह रानियाँ
राजगृह नाम का नगर था । उसके बाहर गुणशील नाम का -उद्यान था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम नन्दा था ।
एक बार भगवान महावीर स्वामी राजगृह के बाहर गुणशील उद्यान में पधारे । परिषद् उनके दर्शन के लिये निकली । भगवान का आगमन सुन कर महारानी नन्दा अत्यन्त प्रसन्न हुई । उसने सेवकों को बुला कर तत्काल धार्मिक रथ तैयार करने का आदेश दिया। सेवक रानी की आज्ञानुसार धार्मिक रथ को सजा कर ले आये । महारानी नन्दा अपने विशाल दासदासियों के परिवार के साथ रथ पर आरूढ़ हुई और भगवान के दर्शन करने के लिये उद्यान में पहुँची। .भगवान ने विशाल परिषद् के बीच महारानी नन्दा को धर्मोपदेश दिया । भगवान का प्रवचन सुन कर नन्दा रानी को वैराग्य उत्पन्न हो गया । महाराजा श्रेणिक की आज्ञा प्राप्त कर बड़े उत्सव पूर्वक नंदा रानी ने दीक्षा अंगीकार की । ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन कर व बीस वर्ष तक चारित्र का पालन कर अन्तिम समय में केवलज्ञान प्राप्त किया और सिद्ध बुद्ध मुक्त हुई ।।
नन्दा रानी की तरह श्रेणिक की बारह रानियों ने भी दीक्षा ली और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गईं। उनके नाम ये हैं
नन्दवती, नन्दोत्तरा, नन्दश्रेणिका, मरुता, सुमरुता, महामरुता, मरुदेवा, भद्रा, सुभद्रा, सुजाता, सुमनातिका, और भूतदत्ता । इन रानियों ने श्रेणिक राजा की उपस्थिति में दीक्षा ली थी ।
श्रेणिक की काली दस रानियाँ ___जब श्रेणिक की मृत्यु हो गई तब पिता वियोग से दुःखी कोणिक -ने अंगदेश की नगरी चम्पा को अपनी राजधानी बनाया । कोणिक के