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आंगम के अनमोल रत्न __ जयन्ती-भगवन् ! क्या सव भवसिद्धिक (मोक्ष प्राप्त करने की योग्यता वाले जीव) मोक्षगामी हैं ?
भगवान-हाँ । जो भवसिद्धिक हैं वे सब मोक्षगामी हैं। ___ जयन्ती-भगवन् ! यदि सब भवसिद्धिक जीवों की मुक्ति हो जायगी तो क्या यह संसार भवसिद्धिक जीवों से रहित हो जायगा ?
भगवान-नहीं जयन्ती । ऐसा नहीं हो सकता। जैसे सर्वाकाश प्रदेशों की श्रेणी मे से कल्पना से प्रति समय एक एक प्रदेश कम करने पर भी आकाश प्रदेशों का कभी अन्त नहीं होता, इसी प्रकार भवसिद्धिक अनादि काल से सिद्ध हो रहे हैं और भनन्त काल तक होते रहेगे फिर भी वे अनन्तानन्त होने से समाप्त नहीं होंगे और संसार कभी भी भवसिद्धिक जीवों से रहित नहीं होगा।
जयन्ती-भगवन् ! जीव सोता हुआ अच्छा है या जागता हुआ अच्छा है?
भगवान-कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का आगना अच्छा है।
जयन्ती-भगवन् ! यह कैसे ? दोनों बातें अच्छी कैसे हो सकती हैं ?
भगवान-जयंती ! अधर्म के मार्ग पर चलने वाले अधर्म का माचरण करने वाले और अधर्म से भरनी जीविका चलाने वाले जीवों का ऊँचना ही अच्छा है क्योंकि ऐसे जीव जव ऊंघते हैं तब बहुत से जीवों की हिंसा करने से बचते हैं तथा बहुत से जीवों को त्रास पहुँचाने में असमर्थ होते हैं। वे सोते हुए अपने को तथा अन्य जीवों को दु.ख नहीं पहुँचा सकते अतः ऐसे जीवों का सोना ही अच्छा है और जो जीव धार्मिक धर्मानुगामी, धर्मशील, धर्माचारी और धर्म पूर्वक जीविका चलाने वाले हैं उन जीवों का जागना अच्छा है क्योंकि, जागते हुए वे किसी को दुःख नहीं देते हुए अपने को तथा अन्य जीवों को धर्म में लगाकर सुखी और निर्भय बनाते हैं। अतः ऐसे जीवों का जागना ही अच्छा है।