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भागम के अनमोल रत्न
६७५ की । अन्तिम समय में संथारा करके सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष पधार गई । इस आर्या ने दस वर्षतक चारित्र का पालन किया ।
- कृष्णारानी यह राजा श्रेणिक की रानी और चम्पा के महाराजा कोणिक की छोटी माता थी । इसने चम्पा में भगवान का उपदेश श्रवण कर आर्या चन्दनवाला के समीप दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा लेकर फिर आर्या चन्दनबाला की आज्ञा प्राप्त करके महासिंहनिष्क्रीड़ित तपस्या की । लघुसिंहनिष्क्रीडित तप में एक उपवास से लेकर ऊपर नौ उपवास तक चढ़कर उसी कम से वापिस उतरा जाता है किन्तु महासिंहनिष्क्रीड़ित तप में एक उपवास से लेकर ऊपर सोलह उपवास तक चढ़कर फिर उसी क्रम से वापिस उतरा जाता है। इस तप की विधि के अनुसार कृष्णारानी ने सर्वप्रथम उपवास किया फिर पारणा करके बेला किया फिर पारणा करके उपवास किया । इस प्रकार ३, २, ४, ३, ५, ४, ६,५, ७, ६, ८,७, ९, ८, १०, ९, ११, १०, १२, ११, १३, १२, १४, १३, १५, १५, १६, १५, १६, १४, १५, १३, १४, १२, १३, ११, १२, १०, ११, ९, १०, ८, ९, ७, ८, ६, ७,५,६,४,५, ३, ४, २, ३,१२,१ उपवास किया । इस प्रकार एक परिपाटी की । जिसमें एक वर्ष छह महिने अठारह दिन लगे । इसमें इकसठ पारणा हुए । एक वर्ष चार महिने सत्रह दिन की तपस्या हुई । चार परिपाटी में छह वर्ष दो महिने और वारह दिन लगे। ___इस तरह कृष्णा आर्या ने महासिंहनिष्क्रीड़ित तप शास्त्रोक्त विधि के अनुसार पूरा किया। इस कठोर तप साधना के कारण कृष्णा साध्वी का देह क्षीण हो गया। अन्त में काली आर्या की तरह अनशन कर मोक्ष प्राप्त किया । इसका दीक्षा पर्याय ११ वर्ष का था ।
. मुकृष्णा आर्या रानी सुकृष्णा चा के राजा कोणिक की लधुमाता एवं राजगृह के महाराजा श्रेणिक की रानी थी। इसने भगवान का उपदेश श्रवण कर