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आगम के अनमोल रत्न
संकेत स्थान पर पहुँचने का वचन दिया है, जो संभवतः अब पूरा न हो सकेगा।
प्रातः काल राजा श्रेणिक बहुत उदास मालूम होते थे। उन्होंने अभयकुमार मंत्री को बुलाकर उसे शीघ्र ही चेलना का अन्तःपुर जला डालने की आज्ञा दी । उसके बाद श्रेणिक महावीर के समवशरण में गया और भगवान से पूछा-भगवन् चेलना पतिव्रता है या नहीं। भग•वान ने उत्तर दिया-'हाँ, चेलना पतिव्रता है ।" भगवान का उत्तर
सुन कर श्रेणिक व्याकुल हो उठा। उसने सोचा कि अभयकुमार ने कहीं भन्तःपुर भस्म न कर डाला हो ! वह शीघ्रता से आया और मंत्री अभयकुमार से पूछा अन्तःपुर तो अभी नहीं जलाया ? मंत्री ने उत्तर दिया-महाराज चिन्ता न करें । अन्तःपुर सुरक्षित है । राजाज्ञा शिरोधार्य करने के लिये केवल एक हस्तिशाला ही जला दी गई थी।
चेलना के प्रति श्रेणिक के इस निंद्य बरताव को देखकर अभयकुमार को संसारसे वैराग्य होगया और उन्होंने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की।
सती प्रियदर्शना सती प्रियदर्शना भगवान महावीर की पुत्री थी। इसके ज्येष्ठा और अनवद्या भी नाम थे। इसका विवाह कुण्डपुर के राजकुमार जमालि के साथ हुआ था । जमालि के दीक्षित होनेपर प्रियदर्शना ने भी 'हमार स्त्रियों के साथ भगवान महावीर के समीप दीक्षा ग्रहण की।
____ जमाली निहव बनकर अपने पांचसौ साथी मुनियों के साथ भगवान महावीर से अलग होगया और अपने सिद्धान्त 'बहुरतवाद' का 'प्रचार करने लगा।
प्रियदर्शना भी हजार साध्वियों के साथ भगवान के संघ से निकल पाई और जमाली के सिद्धान्त को मानने लगी।।
एक बार वह विचरती हुई अपनी साधियों के साथ श्रावस्ती अई और ढंक नामक कुम्भकार के घर ठहरी। ढंक कुम्भकार भगवान