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आगम के अनमोल रत्न
साथ तथा ज्येष्ठा का कुण्डप्राम वासी महावीर के ज्येष्ठ भ्राता नन्दिवर्धन के साथ हुआ था। सुज्येष्ठा और चेलना अभी कुंवारी थीं। .
मगध के राजा श्रेणिक ने जब सुज्येष्ठा के रूप गुण की प्रशंसा सुनी. तो वह उस पर. मोहित हो गया । उसने विवाह का सन्देश लेकर राजा चेटक के पास दूत भेजा, परन्तु चेटक ने यह · कहकर उसे लौटा दिया कि श्रेणिक के कुल में अपनी कन्या नहीं देना चाहता। श्रेणिक को बहुत बुरा लगा। उसने अपने मन्त्री अभयकुमार को चुलाकर पूछा कि क्या करना चाहिये। मन्त्री ने कहा-महाराज आप चिन्ता न करें; सुज्येष्ठा को मैं यहीं ला दूंगा। अभयकुमार ने वणिक . का वेश बनाया और वैशाली पहुँचा। वहाँ राजा के कन्या-अन्तःपुर के पास एक दुकान किराये पर लेकर रहने लगा । अभयकुमार ने चित्रपट पर श्रेणिक का एक सुन्दर चित्र बना कर दुकान में टांग दिया। अभयकुमार की दुकान पर अन्तःपुर की जो दासियों तेलचूर्ण आदि खरीदने आतीं उन्हे वह खूब माल देता और उनका दान मान आदि से सत्कार करता । श्रेणिक के चित्र को देखकर एक दिन दासियों ने पूछा, 'यह किसका चित्र है ?' अभय ने कहा-ये राजा श्रेणिक हैं । दासियों ने पूछा, क्या ये इतने सुन्दर हैं ? अभयकुमार ने कहा-ये इससे भी अधिक सुन्दर हैं, । दासी चित्रपट लेकर · सुज्येष्ठा के पास गई । सुज्येष्ठा श्रेणिक के चित्र को देखकर उस पर - मुग्ध होगई और दासियों से बोली कि कोई ऐसा उपाय करो जिससे . मुझे श्रेणिक मिल सके । दासियों ने आकर अभयकुमार से कहा। अभय- - कुमार ने कहा कि यदि ऐसी बात है तो मैं श्रणिक को यहीं ला सकता हूँ। श्रेणिक वैशाली में आ गया । अभयकुमार ने अन्दर ही अन्दर कन्याअन्तःपुर तक एक सुरंग खुदवाई और नियत समय पर श्रेणिक अपना रथ लेकर सुजेष्ठा को लेने पहुँच गया । . . "
सुज्येष्ठा अपनी छोटी बहन चेलना से बहुत प्रेम करती थी। उसने चेलना को बुलाकर कहा-बहन !-मै श्रेणिक के साथ जा रही