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आगम के अनमोल रत्न रामकृष्णा भार्या ने इस तप को सूत्रोक विधि से भाराधन किया और अनेक प्रकार के तप करती हुई विचरने लगी। उसके बाद रामकृष्णा भार्या ने अपने शरीर को तप के द्वारा अति दुर्बल हुआ आन एक मास की संलेखना की । अन्तिम समय में केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्तकर मोक्ष पद को प्राप्त किया । इसने १५ वर्ष तक संयम का पालन किया ।
पितुसेनकृष्णा रानी कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की नवीं रानी का नाम पितृसेनकृष्णा था । दीक्षा के बाद वह अनेक प्रकार का तप करती हुई विचरने लगी । सती चन्दनबाला की आज्ञा लेकर उसने मुक्तावली तप किया । इसमें एक उपवास से शुरू करके पन्द्रह उपवास तक किये जाते हैं और बीच-बीच में एक-एक उपवास किया जाता है । मध्य में १६ उपवास करके फिर क्रमशः उतरते हुए एक उपवास तक किया जाता है । इसकी भी पहली परिपाटी के सब पारणों में विगयों के सेवन वर्जित नहीं हैं ।
इस तप की एक परिपाटी में तपस्या के दिन २८६ और पारणे के दिन ५९ होते हैं अर्थात् ११ मास और १५ दिन होते हैं । चारों परिपाटियों को पूर्ण करने में तीन वर्ष १० महिने होते हैं । पारणे की विधि रत्नावली तप के समान है।
इस प्रकार तप करती हुई पितृसेनकृष्णा रानी ने देखा कि अब मेरा शरीर तपस्या से अति दुर्बल हो गया है तब उसने सती चन्दनबाला से आज्ञा लेकर एक मास की संलेखना की । केवलज्ञान, केवलदर्शन उपार्जन कर भन्त में मोक्ष पधारी । इसने १६ वर्ष तक चारित्र का पालन किया ।
महासेनकृष्णा कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की दसवीं रानी का नाम महासेनकृष्णा था । उसने आर्या चन्दनबाला के पास