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आगम के अनमोल रत्न
सात, उपवास और बेला किया । पाचवीं लता में छह, सात, उपवास बेला, तेला, चोला, पंचोला किया । छठी लता में बेलो, तेला, चोला, पंचोला, छह, सात और उपवास किया फिर पंचोला, छह, सात, उपवास वेला, तेला और चोला किया। यह सातवीं लता हुई। इस प्रकार सात लताओं की एक परिपाटी पूरी करने में माठ मास भौर पांच दिन लगे जिनमें उनचास दिन पारणे के और छह मास सोलह दिन तपस्या के हुए । इसकी दूसरी परिपाटी में पारणे में विगय का स्याग किया। तीसरी परिपाटी में लेपमात्र का भी त्याग कर दिया और चौथी परिपाटी में पारणे में आयम्विल किया । चारों परिपाटी को पूर्ण करने में दो वर्ष आठ मास बीस दिन लगे। उसने इस तप की सूत्रीक विधि से आराधना की। अन्त में संथारा कर सम्पूर्ण कर्मों का क्षय करके सिद्ध गति को प्राप्त हुई । इसका दीक्षा पर्याय चौदह वर्ष का था ।
रामकृष्णा रानी कौणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की आठवीं रानी का नाम रामकृष्णा था । दीक्षा धारण कर आर्या चन्दनवाला की आज्ञा प्राप्त कर वह भद्रोत्तर प्रतिमा तप अंगीकार कर विचरने लगी।
इस तप में पांच से शुरूकर नौ उपवास तक किये जाते हैं । मध्य में आये हुए अंक को लेकर अनुक्रम से पंक्ति पूरी की जाती है। इसकी प्रथम परिपाटी में पारणे में विगय वर्जित नहीं था। इस तरह पांच पंक्तियों को पूरी करने से एक परिपाटी पूरी होती है। इसकी एक परिपाटी में १७५ दिन तपस्या के और २५ दिन पारणे के, सब मिलाकर २०० दिन अर्थात् छ महिने बीस दिन लगते हैं। चारों परिपाटियों को पूर्ण करने में दो वर्ष दो महिने भौर बीस दिन लगते