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आगमके अनमोलम रत्न
स्वयं पानी लेकर उनके पैर धोने चली । सयोगवश उस समय चन्दना के केश खुले हुए थे। वे कीचड़ में गिरकर कही खराव न होजायें, अतएव धनावह ने उन्हें अपने हाथ से उठाकर बांध दिया। सेठानी खिड़की में बैठी बैठी यह सब देख रही थी । हृदय मलीन होने के कारण प्रत्येक बात उसे उलटी ही मालूम पडती थो । सेठ को चन्दना के वालों को वाधते देख कर वह जल भुन कर रह गई । उसने सोचा"यदि इसके साथ मेरे पति का प्रेम हो गया तो मुझे कोई नहीं पूछेगा अतएव व्याधि के बढ़ने से पहले ही उसका इलाज करना चाहिये । अब वह चन्दना को घर से बाहर निकाल देने के लिये उपाय सोचने लगी ।
एक वार सेठ किसी कार्यवश दो तीन दिन के लिये बाहर चले गये । चन्दनबाला को निकाल देने के लिये मूला ने इस अवसर को ठीक समझा । उसने घर के नौकरों को किसी काम के बहाने बाहर मेज दिया । घर का दरवाजा वन्द करके वह चन्दना के पास आई और बोली-दुष्टे ! तेरी सूरत तो भोली है किन्तु मन में पाप भरा . है। तू ने मेरे पति को वश में कर लिया है। तू मेरी सौत बनने का स्वप्न देख रही है । मेरे जीते जी तेरा स्वप्न कभी सफल नहीं होने दूंगी। यह कह कर उसने चन्दना को खूब पीटा । नाई को बुलाकर उसके सुन्दर केगों को कटवा दिया । उस्तरे से उसका सिर मुंड. वाकर उसे शृङ्खला से वान्ध दिया और कोठरी में डाल कर -ताला लगा दिया । चाबी लेकर वह पीहर चली गई।
कोठरी में पड़े पडे चन्दनवाला को तीन दिन होगया। उस समय उसके लिये केवल भगवान के नाम का ही सहारा था। वह भूखी प्यासी भगवान के नामस्मरण में लीन हो गई।
चौथे दिन दोपहर के समय धनावह सेठ बाहर से लौटे । देखा घर का ताला बन्द है। सेठानी या नौकर चाकर किसी का पता नहीं है। पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि सेठानी पीहर चली गई