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आगम के अनमोल रत्न
६६७. किए हो, पारणे के लिये उड़द के बाकुले सूप में लिये हो, न घर में हो, न वाहर हो, एक पैर देहली के भीतर तथा दूसरा बाहर हो,. दान देने की भावना से अतिथि की प्रतीक्षा कर रही हो, प्रसन्न मुख हो और आँखों में भासू भी हों इन तेरह बातों के मिलने पर ही मै आहार ग्रहण करूँगा । ऐसी भीषण प्रतिज्ञा ग्रहण कर भगवान विचरने लगे । इस तरह भगवान को अपने अभिग्रह की पूर्ति के निमित्त फिरते हुए पाँच मास पच्चीस दिन हो गये । उस दिन भी भगवान
हार की गवेषणा के लिये निकले । भगवान को आहार के लिये आता देख चंदना अत्यन्त प्रसन्न हुई। भगवान जव समीप आये तो चन्दना ने उडद बहराने के लिये सूप आगे बढ़ाया किन्तु अभी भी अपने अभिग्रह में क्मी देख कर भगवान लौट रहे थे कि निराशा से चन्दना के आँखों में आंसू आगये । वह अपने भाग्य को कोसने लगी-ऐसे महान् अतिथि आकर भी मेरे दुर्भाग्य से वापिस लौट रहे हैं। भगवान ने अचानक पीछे देखा तो चन्दमा निराशा से रो रही थी । उसकी आँखों से अविराम भासू टपक रहे थे । तेरहवीं वात पूरी होगई । भगवान वापस लौटे और आहार के लिये अपना हाथ आगे बढ़ा दिया । चन्दना ने भगवान के हाथों में हड़द के बाकुले : रख दिये । भगवान ने उहद के वाकुलों से पारणा किया ।
___ भगवान का पारणा होते हो आकाश देवदुन्दुमियों की मधुर ध्वनि से गूंज उठा । देवतागण जयनाद करने लगे । आकाश से फूल, वस्त्र और सोनयों की वृष्टि होने लगी। चन्दना की हथकड़ियाँ आभु-- षों में बदल गई । सारा शरीर दिव्य वस्त्रों से मुशाभित हो गया और सिर पर कोमल, सुन्दर और लम्बे बाल चमकने लगे।
भगवान महावीर के पारणे की बात सारे नगर में विजली की तरह फैल गई । प्रसन्नता से सारा नगर महासती चन्दना को देखने के लिये उमड़ पड़ा । मूला, सारवान, वैश्या ये सभी चन्दना के पास आये और अपने-अपने अपराध की क्षमा मांगने लगे। विशालहृदया चन्दना ने सभी