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आगम के अनमोल रत्न
सारवान की इस बात को उसकी स्त्री ने सुन लिया । उसे विश्वास हो गया कि मेरे पंति इस पर आसक्त होगये हैं । वह क्रोध से लाल आँखे कर अपने पति के पास आई और बोली - "था तो वसुमती इस घर में रहेगी या मैं रहूँगी ।" जब तक आप इसे बेचकर पैसा नहीं लायेंगे तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगी ।
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सारवान ने अपनी पत्नी को बहुत समझाया किन्तु वह न मानी । अन्त में मजबूर होकर सारवान ने वसुमती को बाजार में एक वेश्या के हाथों बेच दिया । वेश्या सारवान को वसुमती की कीमत देकर उसे जबरदस्ती उठाकर ले चली । वसुमती को चिल्लाते देख बन्दरों ने 'वैश्या पर आक्रमण कर दिया । वेश्या घबरा कर वहाँ से भाग गई ।
बन्दरों के चले जाने पर फिर वेश्या उसके पास आई । उसने सोचा - वसुमती महासती है। इसे अपने घर में नहीं रखा जा सकता । उसने अपनी कीमत वसूल करने के लिये उसे फिर बाजार में लाकर खड़ा कर दिया |
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कोशांबी में धनावह नाम का धार्मिक सेठ रहता था । उसकी स्त्री का नाम मूला था । सेठ ने वेश्या को मुहमांगा दाम देकर वसुमती को खरीद लिया और उसे घर ले भाया । अपनी पत्नी मूग को उसे सौंपते हुए कहा कि देखो, इसे अपनी पुत्री की तरह पालना । वसुमती सेठ के घर रहने लगी । उसने अपने शील-स्वभाव से शीघ्र ही घर के सब लोगों को वश में कर लिया इसलिये उसे सब शीलचन्दना अथवा चंदना के नाम से पुकारने लगे ।
मूला चन्दना से ईर्ष्या करने लगी । उसे सन्देह था कि कहीं -उसका पति उसे अपनी गृहस्वामिनी न बना ले । सेठ चन्दना के कार्यों की प्रशंसा करते थे किन्तु मूला उसका विपरीत हो अर्थ लगाती थी । एक दिन सेठ मध्याह्न के समय घर आया । चन्दना ने देखा कि सेठजी के पैर धुलाने के लिये घर में कोई नहीं है, भतएव वह