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आगम के अनमोल रत्न
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जानता है । एक दिन जब शहर में एक मदमत्त हाथी भयंकर उत्पात मचा रहा था तो उस कुब्ज ने गजदमनी विद्या का प्रयोग कर लोगों को भयंकर कष्ट से उबार लिया था । वह अपने आपको नल का इण्डिक नाम का रसोइया बताता है और वह यह भी कहता है कि 'मैने सूर्यपाक और गजदमनी विद्या नल से सीखी है ।' पास में बैठी हुईं दमयन्ती ने यह बात सुनी । उसे कुछ विश्वास हुआ कि वह राजा नल ही होना चाहिये । सूर्यपाक और गजदमनी विद्या के ज्ञाता नल. ही हैं। हो सकता है कि उन्होंने अपने शरीर का रूप किसी विद्या की सहायता से बदल डाला हो । दमयन्तो ने महाराज भीम से कहा-पिताजी ! महाराजा दधिपूर्ण के रसोइया नल ही हैं क्योंकि ये दो विद्याएँ उनके सिवाय अन्य कोई भी नहीं जानता । उन्होंने गुप्त रहने के लिये ही यह रूप परिवर्तन किया है । हमें शीघ्र ही पता लगाना चाहिये ।
दमयन्तो के कहने पर राज भीम को भी विश्वास हो गया किन्तु वे एक परीक्षा और करना चाहते थे । उन्होंने कहा- राजा नल अश्वविद्या में विशेष निपुण है । यह परीक्षा और कर लेनी है । इससे पूरा निश्चय हो जायगा । फिर संदेह का कोई कारण नहीं" रहेगा इसलिए मैने एक उपाय सोचा है- यहाँ से एक दूत सुंसुमारपुर भेजा जाय । उसके साथ दमयन्ती के स्वयंवर की आमंत्रणपत्रिका भेजी जाय । दूत को स्वयवर की निश्चित तिथि के एक दिन पहले वहाँ पहुँचना चाहिये । यदि वह कुबडा नल होगा तब तो अश्वविद्या द्वारा वह राजा दधिपर्ण को यहाँ एक दिन में पहुँचा देगा । राजा भीम की - यह युक्ति सबको ठोक जॅची । तुरन्त ही एक द्रुत को सारी बात समझाकर सुंसुमारनगर के लिये रवाना कर दिया । निश्चित तिथि के एक दिन पूर्व दूत वहाँ पहुँच गया । राजा दधिपर्ण के पास जब वह पत्रिका लेकर पहुँचा तो राजा उसे देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ | पत्रिका: