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आगम के अनमोल रत्न
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भवलपुर में ऋतुपर्ण राजा राज्य करता था। उसकी रानी का नाम चन्द्रयशा था । उसे मालूम पड़ा कि नगर के वाहर एक सार्थ ठहरा हुमा है। उसमें एक कन्या है । वह देवकन्या के समान सुन्दर है। कार्य में बहुत होशियार है। उसने सोचा यदि उसे अपनी दानशाला में रख दिया जाय तो बहुत अच्छा हो। रानी ने नौकरों को भेजकर उसे बुलाया और बातचीत करके उसे अपनी दानशाला में रखदिया ।
____ चन्द्रयशा दमयन्ती को मौसी थी। चन्द्रयशा ने उसे नहीं “पहिचाना । दमयन्ती अपनी मौसी और मौसा को भली प्रकार पहिचानती थी किन्तु उसने अपना परिचय देना उचित नहीं समझा । वह दानशाला में काम करने लग गई। वह आने जाने वाले अतिथियों को दान देती और साथ ही अपने पति का पता लगाने का भी प्रयत्न करती।
एक वार कुण्डिनपुर का एक ब्राह्मण अचलपुर आया। राजा रानी ने उचित सत्कार करके महाराज भीम और रानी पुष्पवती का कुशल समाचार पूछा। कुशल समाचार कहने के बाद ब्राह्मण ने कहा कि राजा भीम ने राजा नल और दमयन्ती की खोज के लिये चारो दिशाओं में अपने दूत मेज रखे हैं किन्तु अभी उनका कहीं भी पता नहीं लगा है। सुनते हैं कि राजा नल दमयन्ती को जगल में अकेली छोड़कर चला गया है। इस समाचार से राजा भीम की चिन्ता और भी बढ़ गई है। 'नल भौर दमयन्ती की बहुत खोज की किन्तु उनका कहीं भी पता नहीं लगा आखिर निराश होकर अब मैं वापिस कुण्डिनपुर लौट
भोजन करके ब्राह्मण विश्राम करने चला गया । शाम को घूमता हुमा ब्राह्मण राजा की दानशाला में पहुँचा । दान देती हुई कन्या को देखकर वह आगे बढ़ा । वह उसे परिचित सी मालूम पढी। नजदीक पहुँचने पर उसे पहिचानने में देर न लगी । दमयन्ती ने भी ब्राह्मण को पहिचान लिया। .