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आगम के अनमोल रत्
करली । दीक्षा लेने के बाद उसने अंगसूत्रों का अध्ययन किया और वाद में कठोर तप करने लगी । गोपालिका साध्वी ने चम्पा से विहार कर दिया |
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कुछ दिनों के बाद गोपालिका साध्वी अपनी शिष्याओं के साथ पुन: चम्पा पधारी ।
एक दिन सुकुमालिका साध्वी ने अपनी गुरुजी गोपालिका से कहा- आपकी भाज्ञा हो तो मैं बेले बेले की तपस्या करके सुभूमिभाग. उद्यान में सूर्य की आतापना लूँ ।
गोपालिका आर्या ने कहा- आयें ! साध्वी को खुले स्थान में आतापना लेने का निषेध है । उपाश्रय में ही वस्त्र से तन ढंक कर आतापना लेने का आदेश है अतएव तुम्हारा उद्यान में जाकर आतापना केन योग्य नहीं है
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साध्वी सुकुमालिका को गोपालिका की यह बात रुचिकर नहीं लगी । वह बिना आज्ञा के ही उद्यान में पहुँची और सूर्य की आतापना
लेने लगी ।
चम्पा नगरी में ललिता नाम की गोष्ठी (मित्रमंडलो ) रहती थी ।
वह स्वच्छन्द थी । उनको मनमानी करने में उन्हें कोई रोक नहीं
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सकता था । वह ललिता गोष्ठी चम्पा की सुन्दर गणिका देवदत्ता के साथ उद्यान में आई हुई थी और घूम घूम कर वनश्री का आनन्द ले रही थी ।
ललिता गोष्ठी के पांच पुरुषों में से एक ने देवदत्ता को अपनी गोद में बिलाया । एक ने छत्र धारण किया । एक पुष्पों से उसके केश -- कलाप सजाने लगा। एक उसके पैरों में मेंहदी लगाने लगा और एक व्यक्ति उस पर चैवर डुलाने लागा ।
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पाच पुरुषों के साथ क्रीड़ा करती हुई देवदत्ता को सुकुमालिका ने देख लिया । इस दृश्य से सुकुमालिका का मन अस्थिर होगया