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Amirmwammam
आगम. के अनमोल रत्न गई। धीरे धीरे द्रौपदी ने नव यौवन की सीढ़ी पर पाँव रक्खा और वह विवाह के योग्य हुई।
राजा द्रुपद को द्रौपदी विशेष प्रिय थी । वह ..चाहते थे कि द्रौपदो अपने लिए स्वयं वर चुन ले ताकि वह अपना जीवन उसके साथ सुख पूर्वक व्यतीत कर सके तदनुसार उन्होंने द्रौपदी का विवाह स्वयंवर पद्धति से करने का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने एक. विशाल मण्डप बनवाया और दूर दूर के राजाओं को स्वयंवर में आने का निमंत्रण भेज।
निश्चित तिथि पर विविध देशों के अनेक संजा और राजकुमार स्वयंवर मण्डप में उपस्थित हुए। कृष्ण वासुदेव भी अनेक यादवकुमार और पाच पाण्डवों को साथ लेकर वहाँ भाये। महाराजा द्रुपद ने सब अतिथि राजाओं का हार्दिक स्वागत किया ।
निश्चित मुहूर्त पर द्रौपदी नहा धोकर सोलहों शृङ्गार सजकर अपनी परिचारिकाओं के साथ वर का चुनाव करने चली। दासी के हाथ में एक बडा सा दर्पण था जिसमें राजकुमारों को पूरी भाकृति स्पष्ट रूप से प्रतिविम्बित होती थी । दासी वह दर्पण लेकर द्रोपदी के साथ इस प्रकार घूम रही थी कि द्रौपदी दर्पण में प्रत्येक राजकुमार की आकृति' का निरीक्षण कर सके। वह सब राजकुमारों का परिचय भी देती जा रही थी।
अनेक राजकुमारों के सामने होकर घूमती घूमती द्रौपदी पाण्डवों के सामने आई। चरम शरीरी पाण्डव अत्यन्त रूपवान थे। उनके सद्गुणों की ख्याति से द्रौपदी पहले ही परिचित थी । दासी के मुखः से पाण्डवों की वीरता नीति परायणता और धार्मिकता की प्रशंसा सुनकर और पूर्व जन्म के निदान से प्रेरित होकर द्रौपदी ने पांचों पाण्डवों: - के गले में वरमाला डाल दो। द्रौपदी ने पाचौं पाण्डवों को पति के रूप में स्वीकार किया। "राजकुमारी द्रौपदी ने श्रेष्ठ वरण किया है" ऐसा, कहकर सब राजाओं ने उसका अनुमोदन किया । .