________________
आगम के अनमोल रत्न
सुस्थितदेव से मिलकर कृष्ण गंगा महानदी के किनारे आये तो वहाँ उन्हें नौका दिखाई नहीं दी। उन्होंने नौका की बहुत खोज की किन्तु उन्हें नौका नहीं मिली। तब उन्होंने अपनी एक भुजा से घोड़े सहित सारथी को और रथ को ग्रहण किया और दूसरी भुजा सें बासठ योजन वाली विस्तृत गंगा महा नदी को वे पार करने लगे। तैरते तैरते कृष्ण थक गये। वे सोचने लगे-पाण्डव वास्तव में बलवान हैं उन्होंने अपनी भुजा से इतनी बड़ी गंगा को पार किया है। कृष्ण की थकावट देखकर गंगा महादेवी ने जल का स्थल कर दिया। कुछ समय विश्राम कर कृष्ण पाण्डवों से आ मिले।
कृष्ण ने कहा-पाण्डवो ! तुमलोग महा बलवान हों, क्योंकि तुमने साढ़े बासठ योजन विस्तार वाली गंगा महानदी को अपनी भुजा से तैरकर पार की है। तुमलोगों ने चाहकर पद्मनाभ को पराजित नहीं किया।
इस पर पाण्डव कहने लगे-स्वामिन् ! यह बात नहीं किन्तु आपके बल की परीक्षा के लिये ही हमने नाव को छिपा दिया था। ___' कृष्ण यह सुनकर अत्यन्त क्रुद्ध हुए और बोले-ओह ! जब मैने दो लाख योजन विस्तीर्ण लवण समुद्र को पार करके पद्मनाभ को हराया और अमरकंका को ध्वस्त किया और अपने हाथों से द्रौपदी को लाकर तुम्हें सौंपा तब भी तुम्हें मेरे सामर्थ्य का पता नहीं लगा और अब तुम मेरा सामर्थ्य जानना चाहते हो। तुमलोग बड़े दुष्ट हो । यह कह कर उन्होंने लौहदण्ड से पाण्डवों के रथ को वहीं पर चूर चूर कर दिया और उन्हें देश निर्वासन की आज्ञा दे दी । जहाँ पाण्डवों का रथ चूरचूर कर दिया था वहाँ एक विशाल कोट बनाया गया और उसमें रथमर्दन नामक तीर्थ की स्थापना की।
वहाँ से कृष्ण वासुदेव अपनी छावणी आये और सेना को साथ में ले द्वारवती लौट आये।