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आगम के अनमोल रत्न
. राजा द्रुपद ने भी भवितव्य को अटल मान कर अपनी पुत्री द्रौपदी का विवाह पांचों पाण्डवों के साथ विधिपूर्वक कर दिया। आठ करोड़ सोनैया का प्रीतिदान दिया। आगन्तुक मेहमानों का भोजन आदि से. स्वागत किया और उन्हें विदा किया । ___ महाराज द्रुपद से विदा लेकर पाण्डव द्रौपदी के साथ हस्तिनापुर लौट आये । पाण्डवों की प्रार्थना पर कृष्ण वासुदेव आदि हजारों राणागण भी साथ में हस्तिनापुर आये । हस्तिनापुर में द्रौपदी का 'कल्याणकर' उत्सव मनाया गया जिसमें हजारों राजाओं ने सम्मलित होकर उसे सफल बनाया । महाराज पाण्ड ने आगन्तुक राजाभों का भोजनादि से सत्कार कर उन्हें विदा किया ।
पाच पति होने पर भी द्रौपदी ने अपने जीवन को संयमित बनाया । उसने अपनी भोगाभिलाषा को मर्यादित बना लिया था । वह बारी बारी से पांचों की पत्नी थी। जिस समय जिसकी पत्नी होती, उस समय में शेष चार उसके देवर या जेठ के रूप में रहते थे। वह अपनी इस मर्यादा का बड़ी कड़ाई से पालन करती थी।
एक वार महाराज पाण्डु अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए थे साथ में कुन्ती देवी, द्रौपदी देवी, पाचों पाण्डव व अन्य अन्तःपुर का परिवार भी बैठा हुआ था । महाराज अपने परिवार के साथ वर्तालाप कर रहे थे।
उस समय कच्छुल्ल नाम के नारद हाथ में दण्ड और कमंडलु लिये आकाश मार्ग से वहाँ आ पहुँचे । नारद को देखते ही महाराज पाण्डु आसन से उठ खड़े हुए । अपने परिवार ने साथ सात आठ पैर सामने जाकर उनका सम्मान किया। उन्हें नमस्कार कर ऊँचे भासन पर बैठने के लिये आमंत्रित किया ।
नारद ने महाराज सहित समस्त पविार को आशीर्वाद दिया । बाद में आसन पर जल छिड़ककर उस पर अपना दर्भ का भासन