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भागम के अनमोल रत्न
द्रौपदी को विश्वास था कि उसके पति अवश्य ही उसे लेने के लिये यहाँ आवेंगे । कृष्ण वासुदेव के शक्तिशाली पंजे से पद्मनाभ बच नहीं सकता।
एक दिन द्रौपदी ने पद्मनाभ ने कहा-राजन् ! मुझे छ महीने का समय सोचने के लिए दो। छ महिने के भीतर अवश्य ही कृष्ण वासुदेव व मेरे पति मुझे लेने के लिये यहाँ आवेंगे । अगर वे नहीं आये तो मैं आप जो कहेंगे वही करूँगी । '
पद्मनाभ द्रौपदी की यह वात मान गया। उसने उसे सोचने के लिये छ महीने का समय दे दिया ।
द्रौपदी ने सोचा-मेरी रूपराशि ही मेरे सकट का कारण है। इस रूप राशि को तपस्या की आग में झोंक देना ही उचित है। यह सोचकर उसने कठोर तप आरम्भ कर दिया। आयंबिल उपवास बेला तेला भादि तप करती हुई वह स्वाध्याय और ध्यान में अपना समय व्यतीत करने लगी।
द्रौपदी के अचानक राजमहल से गायव हो जाने से सारे नगर में खलबली मच गई । पाण्डवों ने अपनी प्रियतमा द्रौपदी की खोज करने में कुछ भो कसर न रक्खी । चारों दिशाओं में गुप्तचर भेजे गये । कौना-कौना ढूंढ़ लिया गया लेकिन द्रौपदी का कहीं भी पता नहीं लगा। तब निराश होकर पाण्डुराज ने कुन्तीदेवी को द्रौपदी का पता लगाने के लिये कृष्ण वासुदेव के पास भेजा । कृष्ण वासुदेव ने भी द्रौपदी का पता लगाने के लिये बहुत प्रयत्न किया लेकिन उन्हें भो द्रोपदी का पता नहीं मिला।
एक दिन कृष्ण वासुदेव द्रौपदी का पता लगाने के लिये उपाय सोचने लगे । इतने में नारद ऋषि वहां आ पहुँचे । श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा-नारदजी ! आपने कहीं दौपदी को देखा है ? नारद ने उत्तर दिया-धातकी खण्ड द्वीप में अमरकंका नगरी के राजा पद्मोत्तर.