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आगम के अनमोल रत्न उन्हें सुन्दर वस्त्र और अलंकार पहनाये गये । फिर होम किया गया और दोनों का पाणिग्रहण कराया गया ।
सागर के हाथ में ज्यों ही सुकुमालिका का हाथ रखा गया त्यों ही सागर के शरीर में सैकड़ों विच्छुओं ने डंक मार दिया हो ऐसी वेदना होने लगी किन्तु उस समय सागरदत्त विना इच्छा के विवश होकर उस हस्तस्पर्श की पीड़ा का अनुभव करता हुआ थोड़ी देर बैठा रहा।
विवाह की विधि सम्पन्न हुई । सब अपने अपने घर चले गये।
रात्रि के समय सागर सुकमालिका की शय्या पर पहुँचा । वहाँ जब उसने सुकुमालिका के शरीर का सर्श किया तो उसे पुनः वही वेदना होने लगी। वह चुपचाप वहाँ से उठा और अपनी शय्या पर आकर सो गया। __अव सुकुमालिका जगी तो अपने पलंग पर पति को न देख कर वह वहाँ से उठी और अपनी पति की शय्या पर जाकर सोगई ।ज्यों ही सुकुमालिका के शरीर का स्र्श हुमा त्यो ही सागर वेदना के कारण धवरा उठा । वह थोडी देर तक अपनी शय्या पर पड़ा रहा। जब सुकुमालिका सो गई तब भर्द्धरात्रि में वहाँ से चुपचाप भाग कर अपने घर चला गया ।
सुकुमालिका जब उठी तो वह पति की स्वत्र खोज करने लगी लेकिन उसे पति नहीं मिला । वह समझ गई कि पति उसे सदा के लिये छोड़ कर चला गया है । वह रोती रोती अपने पिता के पास पहुँची और उसने पति के चले जाने की बात कह सुनाई ।
अपनी पुत्री की यह बात सुनकर सागरदत्त बड़ा कुद्ध हुभा । वह जिनदास सार्थवाह के घर पहुँचा और सागरपुत्र को वापस घर चले आने के लिये आग्रह करने लगा।
सागरपुत्र ने अपने पिता से तथा श्वशुर से कहा-मै जहर खाकर मर जाना पसन्द करूँगा लेकिन सुकुमालिका के पास अब नहीं जाऊँगा ।