________________
आगम के अनमोल रत्न
महाराज नल व महारानी दमयन्ती न्याय पूर्वक राज्य करते हुए प्रजा का पालन करने लगे।
कुछ समय के बाद दमयन्ती ने एक पुत्ररत्न को जन्म दिया "जिसका नाम पुष्कर रखा गया । जब राजकुमार पुष्कर युवावस्था को प्राप्त हुआ तो उसे राज्यभार सौंप कर राजा नल ने जिनसेन नाम के ज्ञानी स्थविर के पास दीक्षा ग्रहण करली । दमयन्ती ने भी साध्वी से दीक्षा ले ली।
कई वर्षों तक शुद्ध संयम का पालन कर नल और दमयन्ती देवलोक में गये । नल सौधर्म इन्द्र का लोकपाल धनद हुभा और न्दमयन्ती उसकी देवी बनी । वहाँ से दमयन्ती देवी, देव भायु को पूर्णकर पेढालपुर के राजा हरिश्चन्द्र की रानी लक्ष्मीवती के गर्भ में कन्या रूप से उत्पन्न हुई । जन्म होने के बाद कन्या का नाम कनकवती रखा। युवावस्था में कनकवती का विवाह दसवें दशार्ह वासुदेव के साथ हुआ ।
एक बार सागरचन्द्र के पौत्र वलभद्र के स्वर्गवास से कनकचती रानी को बड़ा दुःख हुआ। ससार की असारता का विचार करते-करते उसे केवलज्ञान होगया । फिर उसने नेमिनाथ के समीप मुनिवेष धारण किया और एक मास का अनशन कर निर्वाण पद प्राप्त किया।
साध्वी सुकुमालिका (पूर्व जन्म के लिये देखें नागश्री पृष्ठ ४०७) नरक और तिर्यञ्च गति में बार बार जन्म लेती हुई और भीषण कष्ट सहती हुई नागश्री ने चंपानगरी में सागरदत्त श्रेष्ठी के घर कन्या के रूप में जन्म लिया । धन सम्पति के साथ उसे सुन्दर भौर सुकुमार शरीर भी मिला । उसका नाम सुकुमालिका रक्खा गया ।