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आगम के अनमोल रत्न
भाग रहे थे। एक उन्मत्त हाथी गजशाला से निकलकर सारे नगर में उत्पात मचा रहा था । उसके विकराल रूप से सारा नगर आतंकित था। राजा ने हाथी पकड़ने के लिये भारी पुरस्कार की घोषणा को थी किन्तु मौत के मुख में जाने की कोई भी हिम्मत नहीं कर सकता था । राजा दविपर्ण भी हाथी के उत्पात से चिन्तित थे -1 नल हाथी को दमन करने की कला में प्रवीण था। वह हाधो की ओर बढ़ा । नल को सामने आता देख हाथी का उन्माद और भी बढ़ गया । वह प्रबल वेग से नल की तरफ झपटा । नल हाथी को -सामने आता देख सावधान हो गया और एक तरफ हट गया। भव नल कभी हाथी के आगे और कभी उसके पीछे दौड़ने लगा। थोड़ी देर तक वह उसे इसी प्रकार इधर उधर भगाता रहा फिर मौका पाकर वह हाथी की पीठ पर उछल कर चढ़ गया और दूसरे क्षण अंकुश से हाथी के गंडस्थल पर प्रहार करने लगा । अंकुश के प्रहार से हाथी के का उन्माद उतर गया और वह नल का आज्ञांकित हो गया । सारा नमर इस रोमांचक दृष्य को देखकर अवाक् हो गया। -हाथी को शान्त देखकर लोग हर्ष से नाच उठे और वोने का आभार मानने लगे।
___ कूबड़े को लेकर राजपुरुष महाराज दधिर्ण के पास आये और उन्होंने कूबड़े के पराक्रम की कथा कह सुनाई। भागन्तुक कूबड़े के पराक्रम को सुनकर महाराज दधिपर्ण बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने नल का जनसमूह के समक्ष खूब सम्मान किया और अपनी घोषणा के अनुसार इनाम दिया। इसके बाद राजा ने नल से पूछा-सज्जन ! आप कौन हैं और कहाँ से आये हैं नल ने अपना वास्तविक “परिचय देना उचित नहीं समझा वह अपने आपको छिपाता हुआ बोला-स्वामी । मै अयोध्या के राजा नल का रसोइया हूँ। नल जुए में अपना सारा राज्य हार गये हैं। वे अपनी पत्नी दमयन्ती के साथ अन्यत्र चले गये हैं । नल के चले जाने से मुझे वडा दुख हुआ और