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आगम के अनमोल रत्न
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पुनः सोचने लगा। दमयन्ती को सुखी करने के लिये उसका परित्याग आवश्यक है। कभी नल के मन में दमयन्ती के प्रति ममता उभर आती तो कभी वह वज्रतुल्य कठोर हो जाता । अन्ततः कठोरता ने कोमलता पर विजय पालो। नल ने दमयंती की साड़ी के एक छोर पर अन्तिम आदेश लिख ही दिया और पत्थर का कलेजा करके दमयन्ती को जंगल में निराधार छोड़ कर चल दिया। उस भयानक अटवी में दमयन्ती भव अकेली हो पड़ी हुई थी। नल तीव्रता से आगे बढ़ने लगा और एक बीहड़ अटवी में घुस गया ।
दिन भर की थकी मादी दमयन्ती ने रात्रि के अन्तिम प्रहर में एक भयानक स्वप्न देखा-फलों से लदे हुए एक भाम्र वृक्ष पर वह फल खाने के लिये चढ़ी। उसी समय एक उन्मत्त हाथी आया। उसने आम्रवृक्ष को उखाड़ कर फेंक दिया । वह भूमि पर गिर पड़ी। हाथी उसकी ओर लपका और उसे अपनी सूंड में उठाकर भूमि पर पटका । इस भयंकर स्वप्न को देखकर वह चौक उठी । उठकर उसने देखा तो नल का कहीं पता नहीं था । नल को न देख दमथन्ती भयभीत हो उठी हृदय कांपने लगा । वह सहसा उठ बैठी और नल को आस पास की झाड़ियों में खोजने लगी। आवाज दे दे कर नल को बुलाने लगी किन्तु नल कहीं नजर नहीं भाये । निराश, निरुपाय एवं किंकर्तव्यविमूढ़ दमयन्ती एक झाड़ के नीचे बैठ गई। उसने अपनी साड़ी का एक छोर बिछा कर जरा लेटना चाहा तो उस पर लिखा नल का सन्देश दिखाई पडा । दमयन्ती ने उसे पढ़ा और बेसुध होकर वहीं गिर पड़ी। धीरे धीरे जब उसे होश भाया तो वह उठ खड़ी हुई और आँसुओं को अपने अन्चल से पोंछती हुई नल द्वारा निर्दिष्ट पथ पर चल पड़ी। पति के मादेश का पालन ही पत्नी का परम कर्तव्य है और उसका उसने पालन किया ।
नल उस भयानक अटवी के एक विशाल वृक्ष के नाचे विश्राम करने लगा। अचानक उसके कानों में एक भयंकर चीत्कार सुमाई दी।