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आगम के अनमोल रत्नः
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तो भक्ष्य है और इससे विपरीत अभक्ष्य है तथा 'मित्र सरिसवया" है वह अभक्ष्य है।
शुक--भगवन् कुलत्था आपके लिए भक्ष्य है या अभक्ष्य है।
अनगार-हे शुक ! कुलत्था के दो भेद हैं-स्त्री कुलत्था और धान्य कुलत्था (कुलक)। स्त्री कुलत्था अभक्ष्य है। धान्य कुलत्था अगर शस्त्र परिणत, प्रासुक, याचित, एषणीय, लब्ध है तो वह भक्ष्य है ?
शुक-भगवान् ! मास भक्ष्य है या अभक्ष्य ?
अनगार-हे शुक ! काल मास, भर्थमास और धान्य मास से, मास तीन प्रकार का है। उनमें काल मास (महिना) और अर्थमास (माशा) अभक्ष्य है और धान्य मास (उद) अगर शस्त्र परिणत, प्रासुक, याचित, एषणीय लन्ध है तो वह भक्ष्य है।
शुक-भगवान् ! भाप एक है ? दो हैं ? भनेक हैं ? अक्षय है ? अव्यय है ? अवस्थित हैं ? भूत, भाव और भावी वाले हैं ?
यह प्रश्न करने का परिव्राजक का अभिप्राय यह है कि अगर थावच्चापुत्र अनगार आत्मा को एक कहेंगे तो श्रोत्र आदि इन्द्रियों द्वारा होने वाले ज्ञान और शरीर के अवयव अनेक होने से आत्मा की अनेकता का प्रतिपादन करके एकता का खण्डन करूँगा । अगर वे भात्मा का द्वित्व स्वीकार करेंगे तो 'अहम्' 'मै' प्रत्यय से होने वाली एकता की प्रतीति से विरोध बतलाऊँगा। इसी प्रकार आत्मा की नित्यता स्वीकार करेंगे तो मै अनित्यता का प्रतिपादन करके खण्डन करूँगा । यदि भनित्यता स्वीकार करेगे तो उसके विरोधी पक्ष को अंगीकार करके नित्यता का समर्थन करूँगा । किन्तु परिव्राजक के भभिप्राय को असफल बनाते हुए, अनेकान्तवाद का आश्रय लेकर थावच्चापुत्र 'अनगार उत्तर देते हैं---
हे शुक ! मैं द्रव्य की अपेक्षा से एक हूँ क्योंकि जीव द्रव्य. एक ही है। (यहाँ द्रव्य से एकत्व स्वीकार करने से पर्यायकी अपेक्षा भनेकत्व मानने में विरोध नहीं रहता।) ज्ञान, दर्शन की अपेक्षा मै दो